दिल्ली विवि द्वारा अंतिम वर्ष के एग्जाम कराने से इंकार के बाद प्रदेश के विवि की भी मंशा नहीं

भोपाल
प्रदेश में दो दर्जन सरकारी और ढाई दर्जन निजी विश्वविद्यालय अंतिम वर्ष व सेमेस्टर के एग्जाम नहीं कराना चाहते हैं। क्योंकि एग्जाम कराने से काफी समस्याएं खड़ी हो रही हैं, जिनका निराकरण विवि के अलावा शासन के पास भी नहीं हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा अंतिम वर्ष के एग्जाम कराने से इंकार करने के बाद प्रदेश के विश्वविद्यालय भी एग्जाम करने की मंशा में नहीं हैं।
यूजीसी ने तीस सितंबर तक अंतिम सेमेस्टर व वर्ष की परीक्षाएं कराने की एडवाईजरी जारी की है। प्रदेश में बढ़ते कोरोना संक्रमण को देखते हुए प्रदेश के सभी निजी और सरकारी विवि भी परीक्षाएं नहीं कराना चाहते हैं। कुलपतियों का कहना है कि जब परिस्थतियां विपरीत होती हैं, तो एग्जाम नहीं कराए जा सकते हैं। एग्जाम के दौरान कोई घटनाक्रम घटित हो जाएगा। इसकी जिम्मेदासरी कौन लेगा। उन्होंने कहाकि जब देश की राजधानी दिल्ली में संचालित दिल्ली यूनिवर्सिटी एग्जाम लेने से इंकार कर सकती है, तो मप्र के विश्वविद्यालय भी एग्जाम कराकर विद्यार्थियों के जीवन के साथ खिलवाड़ नहीं करेंगे। जबकि मप्र में कोरोना संक्रमित व्यक्तियों की संख्या में सैकड़ा नहीं बल्कि हजार की संख्या में बढ़ोतरी होने लगी है और जब तक एग्जाम आएंगे। तब तक प्रदेश की स्थिति काफी लचर हो चुकी होगी। ऐसे में यूजीसी को एग्जाम लेकर विद्यार्थियों के जीवन के साथ जोखिम नहीं उठाना चाहिए।
यूजीसी की एडवाईजरी में साफ कर दिया गया है कि प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों के एग्जाम इंटरनल एग्जाम के आधार पर शत प्रतिशत अंकों के आधार पर रिजल्ट तैयार किया जाए। जबकि दूसरे वर्ष के विद्यार्थियों के पचास फीसदी अंक गत वर्ष के एग्जाम और पचास फीसदी अंक द्वितीय वर्ष के इंटरनल एग्जाम के आधार देकर रिजल्ट जारी किए जाएं।
कुलपतियों का कहना है जब यूजी की डिग्री तीन साल की होती है। जब प्रथम और द्वितीय वर्ष के विद्यार्थियों को एक साल के एग्जाम में राहत दी जा रही है, तो अंतिम वर्ष के विद्यार्थियों को ये राहत क्यों नहीं दी जा रही है। जबकि अंतिम वर्ष में विद्यार्थियों के अधिकतर अंक प्रोजेक्ट के आधार पर निर्भर होते हैं। उनके प्रोजेक्ट और इंटरनल एग्जाम से उन्हें पास कर डिग्री आसानी से दी जा सकती है।