प्रज्ञा ठाकुर के शपथ ग्रहण पर लोकसभा में विवाद, विपक्ष ने किया जमकर हंगामा

भोपाल
सत्रहवीं लोकसभा के प्रथम सत्र के पहले दिन नवनिर्वाचित सदस्यों को सदन की सदस्यता की शपथ राज्यवार दिलवाई गई. जब मध्य प्रदेश के सदस्यों का नंबर आया तो भोपाल से निर्वाचित होकर आई साध्वी प्रज्ञा का नाम पुकारा गया. लेकिन जैसे ही प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने शपथ लेना शुरू किया वैसे ही विपक्षी दलों ने सदन में हंगामा शुरू कर दिया. प्रज्ञा जैसे ही शपथ लेने पहुंचीं, विपक्ष ने उनके नाम को लेकर आपत्ति जताई. विपक्षी खेमे की तरफ से हंगामा हुआ.
साध्वी प्रज्ञा ने संस्कृत में शपथ ली. उन्होंने अपना नाम साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर पूर्णचेतनानन्द अवधेशानंद गिरि बोला. उन्होंने अपनी शपथ पूरी करने के बाद 'भारत माता की जय' भी बोला. उनके इस नाम को लेकर कांग्रेस समेत विपक्ष के कुछ सदस्यों ने आपत्ति जताई. प्रोटेम स्पीकर वीरेंद्र कुमार ने प्रज्ञा ठाकुर से संविधान या ईश्वर के नाम पर शपथ लेने को कहा.
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने कहा कि वह ईश्वर के नाम पर ही शपथ ले रही हैं और अपना वही नाम ले रही हैं जो उन्होंने फॉर्म में भरा है. इस बीच कुछ देर तक लोकसभा के अधिकारी और कर्मचारी रिकॉर्ड में दर्ज साध्वी प्रज्ञा का नाम खोजते रहे.
इसके बाद जब अध्यक्ष के हस्तक्षेप से हंगामा थमा तो ठाकुर ने शपथ-पत्र का नाम के बाद का हिस्सा ही पढ़ा. इस पर भी कांग्रेस के सदस्यों ने देर तक आपत्ति जताई. हालांकि वीरेंद्र कुमार ने आश्वासन दिया कि साध्वी प्रज्ञा का जो नाम निर्वाचन प्रमाणपत्र में लिखा होगा वही सदन के रिकॉर्ड में दर्ज किया जाएगा.
उनके शपथ लेने के बाद कुछ सदस्य शपथ के अंत में भारत माता की जय बोल रहे थे. इस पर आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन ने आपत्ति जताते हुए कहा कि शपथ-पत्र का एक प्रारूप और प्रक्रिया होती है, उसी के अनुसार शपथ ली जानी चाहिए.
इस पर पीठासीन वीरेंद्र कुमार ने कहा, सदस्यों से अनुरोध है कि वे शपथ-पत्र का ही वाचन करें. उनकी इस व्यवस्था का यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत कांग्रेस के अन्य सदस्यों ने मेज थपथपाकर स्वागत किया.
भोपाल में चुनाव के समय ही प्रज्ञा ठाकुर ने महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त कहकर खलबली मचा दी थी. इसके विपक्ष ने बीजेपी को जमकर घेरने की कोशिश की थी. प्रज्ञा के इस बयान पर खुद पीएम मोदी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि वो कभी प्रज्ञा को माफ नहीं कर पाएंगे.
इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने बहुत बड़ा दांव खेला था. पार्टी ने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को इस सीट पर भेजा था, जिससे सूखा समाप्त किया जा सके. दिग्विजय सिंह राज्य के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं. माना जाता है कि आज भी मध्य प्रदेश की राजनीति में दिग्विजय सिंह की दखल काफी ज्यादा है. लेकिन बीजेपी की प्रज्ञा ठाकुर के आगे दिग्विजय का कोई भी दांव नहीं चला. भोपाल सीट पर उन्हें बुरी हार का सामना करना पड़ा.