बारहसिंगा, चौसिंगा और कछुओं को रास आ रहा वन विहार

भोपाल
अनुकूल प्राकृतिक परिस्थितियां नहीं होने के बावजूद भी भोपाल का वन विहार अब बांधवगढ़ के बाहरसिंगा, चौसिंगा और अफ्रीका के कछुओं को रहवास स्थल बन गया है। दरअसल, वन विहार प्रबंधन द्वारा कृत्रिम रूप से उपलब्ध कराए जा रहे अनुकूल वातावरण से इनका कुनबा लगातार बढ़ रहा है।
बीते हफ्ते ही मादा चौसिंगा ने शावक को जन्म दिया है। इसके पहले बारहसिंगा के कुनबे में नए मेहमान आएं हैं। ये दोनों ही प्रजाति शेड्यूल-1 में आती है। अब अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान के कछुए भी वन विहार में जीवन अच्छा बिता रहे हैं। बता दें कि हार्ड ग्राउंड प्रजाति के बारहसिंगा विश्व में केवल बांधवगढ़ नेशनल पार्क में ही पाए जाते हैं। अब वन विहार नेशनल पार्क में भी इनका कुनबा बढ़ रहा है।
यहां तीन साल में बाहरसिंगा का कुनबा 7 से बढ़कर 14 का हो गया है। वहीं 26-27 नवंबर 2018 की रात सिवनी जिले में पुलिस व वन विभाग की संयुक्त कार्रवाई में 6 कछुए पकड़े गए थे। इन्हें अफ्रीका से बांग्लादेश के रास्ते भारत लाया गया था, जिन्हें मुंबई ले जाया जा रहा था। इन्हें भी वन विहार नेशनल पार्क में रखवाया गया है।
वन विहार प्रबंधन द्वारा कछुओं को जिस कमरे में रखा जाता है, वहां हीटर व अधिक वाट के बल्ब लगाए गए हैं, ताकि इन्हें ठंड से बचाया जा सके। ठंडा फर्श, कछुओं में बेचैनी पैदा करता है, इसलिए प्लायवुड डालकर उस पर घास बिछाई है। सुबह से दोपहर 3 बजे तक इन्हें धूप में घुमाने का इंतजाम किया है, ये भोजन के रूप में प्राकृतिक घास खाते हैं।
इनका कुनबा बढ़ाने के लिए वन विहार प्रबंधन ने इनके बाड़े का विस्तार किया है। 2015 में कान्हा किसली टाइगर रिजर्व से 7 बारहसिंगा वन विहार पार्क में लाए थे। इनमें तीन नर व चार मादा बारहसिंगा थे। बेहतर प्रबंधन व देखरेख के चलते इनकी संख्या बढ़कर अब 14 हो गई है। वन्यप्राणी विशेषज्ञ पुष्पेंद्र द्विवेदी बताते हैं कि 1975 के दशक में कान्हा रिजर्व में करीब 60 बारहसिंगा ही बचे थे। वन विभाग के सामने इनका अस्तित्व बचाना चुनौती था। इसके चलते कान्हा में संरक्षण के प्रयासों के साथ-साथ वन विहार और होशंगाबाद के सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में इन्हें शिफ्ट किया गया।