मोदी सरकार ने इन कदमों से अगड़ों-पिछड़ों-दलितों को साधा

मोदी सरकार ने इन कदमों से अगड़ों-पिछड़ों-दलितों को साधा

 
नई दिल्ली   
 
पहले सवर्ण आरक्षण और अब एससी/एसटी/ओबीसी के लिए 200 प्वाइंट का रोस्टर सिस्टम. इससे साफ है कि मौजूदा सरकार भावी आम चुनावों से पहले समाज के किसी वर्ग को अपनी कवायदों से अलग नहीं रखना चाहती. विपक्ष का शुरू से आरोप रहा है कि केंद्र की मोदी सरकार दलित, आदिवासी, वंचित, शोषित और कमजोर तबके का ध्यान कम रखती है और अगड़ी जाति पर उसका प्यार ज्यादा परवान चढ़ता है.

हालांकि सरकार इससे पल्ला झाड़ती रही है और कुछ कदम उठाकर दिखाया है कि उसे कमजोर तबके की उतनी ही फिक्र है जितनी अगड़ों की. इसी क्रम में संशोधित दलित कानून और सवर्णों के लिए 10 प्रतिशत कोटे का प्रावधान किया गया.

जानें क्या है रोस्टर सिस्टम

13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम का सीधा संबंध कॉलेज और यूनिवर्सिटी में फैकल्टी मेंबर्स (प्रोफेसर) की बहाली और उसमें आरक्षण से है. यह ऐसा रोस्टर सिस्टम है जिसमें कॉलेज या यूनिवर्सिटी का हरेक चौथा टीचर ओबीसी, सातवां टीचर एससी और हर चौदहवां टीचर एसटी कैटेगरी में नियुक्त होता है. इसके तहत कॉलेज या यूनिवर्सिटी के प्रत्येक डिपार्टमेंट को एक यूनिट माना जाता है. डिपार्टमेंट को एक यूनिट मानते हुए टीचर की भर्ती में आरक्षण देने की सुविधा है. इसमें अब तक यही होता था कि पूरी यूनिवर्सिटी को एक अकेली यूनिट मानते हुए आरक्षण दिया जाता था.

2017 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक फैसले में आदेश दिया कि एससी/एसटी या ओबीसी के फैकल्टी मेंबर्स की नौकरी में आरक्षण के लिए यूनिवर्सिटी या कॉलेज को अकेली यूनिट नहीं मानकर प्रत्येक विभाग को यूनिट माना जाएगा. आगे मामला सुप्रीम कोर्ट में गया जहां शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को यथावत रखा. इस फैसले के खिलाफ छात्र और टीचर सड़कों पर उतर गए और कहा कि इससे एससी/एसटी और ओबीसी वर्ग को काफी घाटा होगा और उनके कोटे में कमी आएगी.

रोस्टर सिस्टम और राजनीति

लोगों के विरोध और फैसले की आलोचना को देखते हुए विपक्षी दलों को भी नया हथियार मिला और उन्होंने सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया. इन पार्टियों का आरोप रहा कि सरकार को ऐसे वर्ग की कोई चिंता नहीं तभी सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन नहीं डाली गई. इसी मुद्दे पर मंगलवार को भारत बंद भी हुआ. सरकार ने इस विरोध को अवसर माना और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को किनारे करते हुए पुराने रोस्टर सिस्टम के लिए आदेश जारी कर दिया.

जानकारों की मानें तो सरकार का यह कदम ठीक वैसा ही था जैसा दलित कानून के संशोधन के संबंध में लिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि बिना जांच के फौरी तौर पर गिरफ्तारी नहीं होगी और इसके लिए एसडीएम रैंक के अधिकारी से इजाजत लेनी होगी. सरकार ने कोर्ट के इस आदेश को भी दरकिनार किया और दलित कानून को और भी सख्त बनाते हुए संशोधित कानून पास कराए. ठीक वैसे ही रोस्टर में आरक्षण के लिए सरकार ने गुरुवार को अध्यादेश पारित कर दिए. सरकार ने कैबिनेट बैठक में यह फैसला लिया. माना जा रहा है कि गुरुवार को हुई कैबिनेट बैठक सरकार के इस कार्यकाल की आखिरी बैठक थी. जिसमें एससी/एसटी और ओबीसी से जुड़ा इतना बड़ा फैसला लिया गया.

लंबे दिनों से थी मांग

एससी/एसटी और ओबीसी वर्गों की सरकार से मांग रही थी कि 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम के कारण कॉलेज और यूनिवर्सिटी में आरक्षित सीटें खाली रह जाती हैं. सरकार ने इस पर ध्यान दिया और 200 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम लागू किया ताकि पिछड़ी जाति को नौकरी में ज्यादा मौके मिलें और खाली सीटें आसानी से भरी जा सकें. हालांकि कुछ जानकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले से इत्तेफाक रखते हैं और कहते हैं कि कोर्ट ने अगर पूरी यूनिवर्सिटी को सिंगल यूनिट मानकर आरक्षण का प्रावधान रखा तो इसकी वजह यह थी कि किसी डिपार्टमेंट में सिर्फ आरक्षित कैंडिडेट ही न भर जाएं या कुछ डिपार्टमेंट अनारक्षित या जनरल कैटेगरी से ही नहीं भरे जाएं. कोर्ट का मानना था कि जो भी भर्तियां हों वो संतुलित रहें न कि कहीं ज्यादा या कम. मगर इससे रिक्तियां बढ़ती गईं जिसका विरोध व्यापक हो गया.

सरकार का बैलेंसिंग एक्ट

जब सरकार ने सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण दिया, तभी ये मांग जोर पकड़ने लगी कि दलितों के लिए भी कुछ ऐसा जरूर होना चाहिए जिसका असर ऐतिहासिक हो क्योंकि सरकार सवर्ण आरक्षण पर अगर हजारों करोड़ रुपए खर्च कर सकती है तो इसे बैलेंस करने के लिए एससी/एसटी ओबीसी के लिए भी कुछ बड़ा करने का तुक बनता है. इसका नतीजा है 200 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम. सरकार ने सवर्ण आरक्षण लागू करते हुए स्पष्ट कहा था कि यह कोटा 2019 के एकेडमिक सेशन से लागू होगा. अर्थात सरकार चाहती थी कि इसका कोई असर एससी/एसटी या ओबीसी के एडमिशन या नौकरी पर न दिखे. सरकार ने रोस्टर सिस्टम लागू कर सवर्ण आरक्षण को बैलेंस करने की पूरी कोशिश की है.

ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा

पिछले साल मार्च में सरकार ने ओबीसी के लिए बड़ा कदम उठाया था. पीएम की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की मीटिंग में संसदीय समिति की सिफारिश को मंजूरी दे दी थी. इसके बाद ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा दे दिया. इसके साथ ही यह सिफारिश भी मान ली कि ओबीसी सूची में शामिल करने या हटाने की सिफारिश करने का अधिकार ओबीसी आयोग को मिले. ओबीसी छात्रों के लिए मौजूदा 21 फीसदी वजीफे को बढ़ाया जाए और ओबीसी क्रीमीलेयर का दायरा बढ़ाया जाए.