पंजाब में ब्लैक आउट का खतरा, किसानों के मुद्दे पर जुबानी जंग में उलझे सियासी दल

चंडीगढ़
पंजाब के किसान पिछले करीब डेढ़ महीने से केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ लामबंद हैं. किसानों के धरने-प्रदर्शन और रेलवे ट्रैक्स के बाधित होने की वजह से पंजाब में कई दिनों से मालगाड़ियों की आवाजाही ठप है. प्रदर्शनकारियों की ओर से रेलवे की संपत्तियों और स्टाफ को नुकसान पहुंचने की आशंका की वजह से अब रेल मंत्रालय ने राज्य में 7 नवंबर तक सभी तरह की रेलगाड़ियों की आवाजाही बंद रखने का फैसला किया है. मालगाड़ियों के न चलने से पंजाब की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा है. एक अनुमान के मुताबिक आंदोलन की अवधि में अकेले पंजाब सरकार को ही 40,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हो चुका है. इसके अलावा राज्य की औद्योगिक इकाइयों तक कच्चा माल ना पहुंचने और तैयार माल उनके निर्धारित स्थानों तक नहीं पहुंचने से प्राइवेट सेक्टर को भी करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ है. ट्रेनों की आवाजाही रुकने का खामियाजा अब पंजाब के आम लोगों को भी भुगतना पड़ रहा है. दरअसल कोयले की आपूर्ति न हो पाने की वजह से पंजाब के पांच थर्मल प्लांटस को बंद करना पड़ा है और राज्य में होने वाले बिजली उत्पादन में भारी गिरावट आई है. अनुमान के मुताबिक ये कमी 1500 मेगावाट तक है.
ब्लैक आउट की आशंका?
राज्य में ब्लैक आउट की नौबत न आ जाए इसलिए पंजाब सरकार पड़ोसी राज्यों से बिजली खरीद रही है. इसके अलावा तीन प्राइवेट थर्मल पावर प्लांट के साथ किए गए अनुबंध के चलते अब सरकार को उन्हें प्रतिदिन पांच से दस करोड़ रुपये का भुगतान अलग से करना पड़ रहा है. राज्य में अचानक बिजली उत्पादन गिरने का असर अब कई हिस्सों में देखने को मिल रहा है. हालांकि राज्य सरकार दावा कर रही है कि अभी तक पावर कट नहीं लगाए गए हैं लेकिन थर्मल पावर प्लांट बंद होने के बाद राज्य के कई हिस्सों में 2 से 3 घंटे तक बिजली गुल हो रही है.
उफान पर सियासत
ट्रेनों की आवाजाही रुकने के बाद पंजाब सरकार पसोपेश में है. मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह केंद्र में रेल मंत्री पीयूष गोयल को कई हफ्ते पहले चिट्ठी लिख चुके हैं, लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ. पंजाब के कुछ सांसदों ने रेल मंत्री पीयूष गोयल और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात का समय मांगा था जो नहीं मिला. पंजाब में सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का दावा है उल्टा रेल मंत्रालय की तरफ से पंजाब पर ही इल्जाम लगाया गया है और कहा गया है कि जब तक किसान रेल की पटरियां और स्टेशन खाली नहीं करेंगे रेलगाड़ियां नहीं चलेंगी.
केंद्र पर बातचीत के दावे बंद करने का आरोप
मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह मालगाड़ियों और कृषि बिलों को लेकर भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भी मिलना चाहते थे लेकिन उन्हें अभी तक समय मिलने का इंतजार है. कैप्टन भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा को भी पत्र लिख चुके हैं. केंद्र सरकार की बेरुखी के चलते कैप्टन अमरिंदर सिंह और कांग्रेस के विधायक बुधवार को दिल्ली पहुंचे और उन्होंने राजघाट और जंतर मंतर पर केंद्र सरकार के खिलाफ नाराजगी का इजहार किया. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि चारों तरफ से बातचीत के दरवाजे बंद हो जाने के बाद उनको आखिर सांकेतिक धरना देने पर मजबूर होना पड़ा है, ताकि केंद्र सरकार के कानों तक पंजाब की बदहाली का संदेश पहुंच जाए.
“कैप्टन का दिल्ली धरना सियासी स्टंट”
वहीं, पंजाब की कई विपक्षी पार्टियों भारतीय जनता पार्टी, आम आदमी पार्टी और शिरोमणि अकाली दल ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के दिल्ली धरने को महज राजनीतिक स्टंट करार दिया है. अकाली दल के वरिष्ठ नेता डॉ दलजीत चीमा ने कहा कि “जब कैप्टन अमरिंदर सिंह को मालूम है कि पंजाब के मर्ज की दवा सिर्फ प्रधानमंत्री के पास है तो वह आखिर दाएं-बाएं जाकर अपना और लोगों का समय क्यों बर्बाद कर रहे हैं.” अकाली दल ने केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को भी कटघरे में खड़ा किया. पार्टी के मुताबिक पंजाब में मालगाड़ियां रोककर राज्य की माली हालत खराब की जा रही है और नतीजा पंजाब के लोगों को भुगतना पड़ रहा है.
मौजूदा हालात के लिए कैप्टन सरकार ही जिम्मेदार: बीजेपी
इस मसले पर चारों तरफ से घिरी भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने पंजाब के बिगड़ते हालात के लिए राज्य की कांग्रेस सरकार को ही जिम्मेदार ठहराया है. बीजेपी के वरिष्ठ नेता तरुण चुग ने कहा है कि एक तरफ तो कैप्टन अमरिंदर सिंह खुद किसानों को आंदोलन करने के लिए उकसा रहे हैं और साथ ही अब केंद्र सरकार को ब्लैकमेल करने में लगे हुए हैं.