अब छुप नहीं पाएगी टीबी, बोलते लग जाएगा पता

राजधानी में भी 500 के सैंपल लिए गए
भोपाल। जल्द ही टीबी का पता लगाने के लिए महंगे सीबी एनएएटी, म्यूकस, समेत अन्य जांच की जरूरत नहीं होगी। सिर्फ एबीसीडी, गिनती, बोलने और खांसने से ही मरीज को टीबी है या नहीं पता चल सकेगा। जल्द ही अन्य अस्पताल समेत एम्स में भी इस सॉफ्टवेयर शुरू किया जाएगा। यह जानकारी केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव डॉ. राजेश भूषण ने दी।
इसे भी देखें
दुनिया के आधा दर्जन से ज्यादा देशों में हैं भारतीय मूल के विदेशी राजनेता, कहां, कौन है
सेंट्रल टीबी डिवीजन द्वारा पायलट प्रोजेक्ट शुरू
एम्स भोपाल में आयोजित रिसर्च एक्सपो में शामिल होने आए थे। उन्होंने बताया कि सेंट्रल टीबी डिवीजन द्वारा एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। पूरे देश में इस पर काम किया जा रहा है। इस सॉफ्टवेयर में दो लाख से ज्यादा वॉयस सैंपल रिकॉर्ड हैं यह ऐप आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस है, जो रिकॉर्ड किए गए सैंपल से व्यक्ति की खांसी की आवाज के सैंपल का मिलान करेगा और रिजल्ट बताएगा। आईए के जरिए टीबी के बढ़ते प्रसार को रोकने में भी मदद मिलेगी। इस कार्यक्रम में मंत्रालय के संयुक्त सचिव नीलांबुज शरण, एम्स निदेशक डॉ. अजय सिंह सहित अन्य अतिथि मौजूद थे।
इसे भी देखें
खाते में नहीं आई किसान सम्मान निधि तो करें ये काम
एक से 10 तक गिनती जैसी चिजों रिकॉर्डिंग होती है
मौजूद डॉक्टरों ने बताया कि साफ्टवेयर में सामान्य व्यक्ति के साथ स्पूटम पॉजिटिव और निगेटिव कैटेगरी समेत अन्य कैटेगरी के लोगों की आवाज को शामिल किया गया है। एक व्यक्ति की आवाज 30 सेकंड तक रिकॉर्ड की जाती है। इसमें खांसने वाले व्यक्ति की वॉयस को रिकॉर्ड किया जाता है। साथ ही एक से 10 तक गिनती जैसी चिजों रिकॉर्डिंग होती है। जिसके बाद यह संक्रमण और उसके स्तर के बारे में बताता है। मप्र में भी स्वास्थ्य विभाग ने 2021 में इस सॉफ्टवेयर पर काम शुरू किया था। इसके लिए हर जिले से आवाज के नमूने मंगवाए गए थे। राजधानी से करीब 500 लोगों की वॉयस रिकॉर्डिंग राज्य सरकार को भेजी गई थी।
एम्स में आए मरीजों से मिले आंकड़ों पर ही रिसर्च करें
कार्यक्रम में डॉ. भूषण ने कहा कि छात्र एम्स में आए मरीजों से मिले आंकड़ों पर ही रिसर्च करें। छात्रों को ऐसा शोध करना चाहिए जिसमें यह पता चल सके कि इस क्षेत्र में किस तरह की बीमारियां हैं। साथ ही उन्हें कैसे कम किया जा सकता है। इतना ही नहीं, ऐसे शोध किए जाएं जिनके परिणाम लागू किए जा सकें। हमेसा याद रखें रिसर्च एसी हो जो बीमारियों के रोकथाम में अपना योगदान दें। स्वास्थ्य के क्षेत्र में उभरती प्रौद्योगिकियों और आईटी के जरिए समाधान की आवश्यकता पर भी ध्यान देना जरूरी है।
इसे भी देखें
पीएम कुसुम योजना के तहत किसानों को मिल रही 90% की सब्सिडी, जानिए कैसे मिलेगा लाभ
मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल किया तो अंगूठे पर पड़ेगा असर
एक्सपो में मोबाइल फोन पर एक संक्षिप्त अध्ययन भी प्रस्तुत किया गया। एम्स के छात्रों ने लगातार मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने वालों और उनका इस्तेमाल नहीं करने वालों की हथेलियों पर शोध किया। शोध में पाया गया है कि मोबाइल फोन के ज्यादा इस्तेमाल से हाथों के आकार, खासकर अंगूठे के आकार में बदलाव आ जाता है। वहीं, फॉरेंसिक विभाग में एक्स-रे फिल्म से मौत के कारणों का पता लगाने के लिए लगातार शोध किया जा रहा है। इसके अलावा डॉ. रजनीश जोशी ने कोविड-19 के निदान, प्रबंधन और निगरानी के लिए संस्थान में किए गए सभी शोध कार्यों की समीक्षा प्रस्तुत की। संकाय सदस्यों और छात्रों के लगभग 100 शोध पोस्टरों का प्रदर्शन किया गया।