लोकतांत्रिक देशों के लिए सबक है श्रीलंका का हश्र, आत्मघाती साबित हुआ राजपक्षे पर अतिविश्वास
ब्रम्हदीप अलुने
करिश्माई सत्ता लोकतांत्रिक देशों के लिए धीमे ज़हर के समान है जो वैधानिक व्यवस्था को तहस नहस कर राष्ट्र की अखंडता को संकट में डाल देती है।
दरअसल गोटभाए राजपक्षे ने तमिलों के नरसंहार और सिंहली राष्ट्रवाद के बूते सत्ता पर पकड़ मजबूत की और फिर वह सर्वेसर्वा हो गए।
18 वी सदी में फ्रांस के एक राजा हुए थे लुई सोलहवां। वे कहते थे मैं ही भगवान हूँ। परम्परावादी शासन व्यबस्था में यह स्वीकार्य था लेकिन लोकतंत्र में यह अवस्था जानलेवा हो जाती है।
श्रीलंका के ताजा संकट के पीछे विकासशील देशों में संचालित लोकतांत्रिक परम्पराओं की वह मान्यता भी काफी हद तक जिम्मेदार है जहां करिश्माई नेतृत्व को सम्पूर्ण सत्ता सौंपकर आम जनता खुशियां ढूंढती है और राजनीतिक सत्ता पर जनता का यह अतिविश्वास अंतत: आत्मघाती बन जाता है।
पहले जनता अपने नेतृत्व को भगवान ठहराती है और बाद में राजनीतिक नेतृत्व खुद को भगवान समझ लेते है। करिश्माई सत्ता पर जनता का इतना अटूट विश्वास हो जाता है कि विपक्ष बेदम और बेबस हो जाता है।
श्रीलंका में भी यही हुआ। राजपक्षे ने विकास के नाम पर मनमाने प्रोजेक्ट बनाये और चीन से बेतहाशा कर्ज लेकर देश को कर्ज के जाल में डुबो दिया। फिर किसानों की मांगों को अनसुना कर जैविक खेती के नाम पर देश की कृषि अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया।
नतीजा एक अच्छे भले देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई। लोग महंगाई से परेशान हुए तो उन्हें सिंहली राष्ट्रवाद के सपनो में डुबाने के भरसक प्रयास हुए।
आम जनता जब त्रस्त हो गई तो उन्होंने विद्रोह कर दिया। यह भी दिलचस्प है कि जिन बौद्ध भिक्षुओं के बूते राजपक्षे ने देश की सत्ता को परम्परा के नाम पर चलाने का खेल शुरू किया था। वे बौद्ध भिक्षु राजपक्षे को राष्ट्रपति भवन से भगाकर लोगो के साथ जश्न में शामिल है।
सत्ता तीन प्रकार की होती है। वैधानिक सत्ता जो नियमों पर चलती है और शासक उस पर चलने को मजबूर होता है,इसका आदर्श उदाहरण ब्रिटेन है। जहां के प्रधानमंत्री को कोरोना काल मे गलत फैसलों के कारण अंततः हटना पड़ा। लोकतंत्र का यह बेहद सकारात्मक पक्ष था कि उनके वित्त मंत्री ने ही प्रधानमंत्री की आर्थिक नीतियों की आलोचना कर दी। ऐसे देशों में लोकतंत्र मजबूत होता है।
दूसरे प्रकार की सत्ता परम्परावादी होती है जहां शासक भगवान माने जाते है।
जबकि तीसरे प्रकार की सत्ता करिश्माई होती है। जहां लोगों का भरोसा पाकर शासक तानाशाह बन जाते है।
श्रीलंका के यह हश्र लोकतांत्रिक देशों के लिए सबक है की देश को वैधानिक व्यवस्था से ही चलने देना अंततः सबसे बेहतर है।
फिलहाल श्रीलंका के लोग राष्ट्रपति भवन के शाही पुल में डुबकियां लगा रहे है। वे डुबकियो से तो पल में ऊपर आ जाएंगे लेकिन राजपक्षे पर भरोसे की जो गलती उन्होंने की है उससे श्रीलंका को ऊपर आने में कई बरस लग जाएंगे।