अनाथालय से मिला टाटा सरनेम और बदल गई किस्मत, जानिए 100 से अधिक कंपनियों वाले टाटा ग्रुप बनने की कहानी 

अनाथालय से मिला टाटा सरनेम और बदल गई किस्मत, जानिए 100 से अधिक कंपनियों वाले टाटा ग्रुप बनने की कहानी 

मुंबई, रतन टाटा के पिता नवल टाटा अहमदाबाद में एडवांस्ड मिल्स में स्पिनिंग मास्टर के रूप में काम करते थे। उनका जन्म 30 अगस्त 1904 को महाराष्ट्र के बॉम्बे में हुआ था। 1908 में जब नवल सिर्फ चार साल के थे, तब उनके पिता का निधन हो गया, जिससे परिवार गरीबी का शिकार हो गया। पिता की मौत के बाद नवल और उनकी मां नवसारी चले गए, जो गुजरात में था। नवसारी में नवल की मां ने जीवनयापन के लिए कढ़ाई का छोटा सा काम शुरू किया।

जमशेदजी टाटा द्वारा स्थापित टाटा ग्रुप 155 साल पुराना है

वर्तमान में टाटा ग्रुप में लगभग 100 कंपनियां शामिल है और 660,000 लोग काम करते हैं। जमशेदजी टाटा द्वारा स्थापित 155 साल पुराना टाटा ग्रुप लगभग हर क्षेऋ में व्यापार करता है। टाटा का बिजनेस जगुआर लैंड रोवर और टाटा स्टील से लेकर एविएशन और नमक से लेकर सॉफ्टवेयर तक फैला हुआ है। रतन टाटा का जन्म 1937 में एक पारसी परिवार में हुआ था। आज रतन टाटा द्वारा किए गए कामों के ख्कचलते उन्हें पूरी दुनिया में याद किया जा रहा है। 

रतन टाटा के पिता को कैसे 'टाटा' सरनेम मिला

लोग उनकी फैमिली बैकग्राउंड जानना चाहते हैं। लोग यह भी जानना चाहते हैं कि कैसे रतन टाटा के पिता नवल होर्मुजजी को 'टाटा' सरनेम मिला जबकि रतन टाटा के पिता नवल टाटा का जन्म टाटा परिवार में नहीं हुआ था।

अनाथालय में बदली नवल की किस्मत

परिवार के सामने लगातार आ रही चुनौतियों के कारण शुभचिंतकों ने नवल को अनाथालय में जाने में मदद की ताकि वह अपनी पढाई लिखाई कर सकें। इस फैसले ने नवल के जीवन की दिशा हमेशा के लिए बदल दी। नवल को एक पारसी अनाथालय भेजा गया, जहां उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा पाई। यहीं पर उनके जीवन ने एक नाटकीय मोड़ लिया।

अनाथालय में टाटा बन गए नवल रतनजी टाटा के पिता

अनाथालय जाने के बाद सर रतनजी टाटा की पत्नी, लेडी नवाजबाई टाटा ने युवा नवल को अपने बेटे के रूप में गोद ले लिया, उसे 'टाटा' सरनेम देकर किस्मत बदल दी। उस समय नवल की उम्र केवल 13 वर्ष थी। नवल को गोद लेने बाद नवल की शिक्षा और उनके फ्यूचर का ख्याल टाटा फैमिली ने रखा। उन्होंने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन किया और बाद में अकाउंटिंग में आगे की पढ़ाई के लिए लंदन चले गए।

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