दम तोड़ते नजर आ रहे कपास उद्योग

दम तोड़ते नजर आ रहे कपास उद्योग
dayanand chourasia छिंदवाड़ा/पांढुर्णा। कपास के उत्पादन में विशेष पहचान बनाने वाले सौंसर और पांढुर्णा क्षेत्र में शासन की नीतियों के कारण कपास उद्योग दम तोड़ता नजर आ रहा है। हालत ये है कि एमपी में महाराष्ट्र की मंडी से दोगुना शुल्क वसूला जाता है, जिसके कारण कपास उद्योग पर मार पड़ रही है। हालत ये है कि आधा दर्जन में से तीन काटन फैक्ट्री ही संचालित हैं, जबकि दो फैक्ट्री बंद होने की कगार पर है। इस समस्या के पीछे मुख्य वजह मंडी का टैक्स है। महाराष्ट्र में जहां 60 पैसे प्रति सौ रुपए है। वहीं एमपी में ये टैक्स एक रुपए 20 पैसे पड़ता है। जिसके कारण पांढुर्णा का किसान महाराष्ट्र सीमा पार कर कपास बेच रहा है। इससे न सिर्फ राजस्व का नुकसान हो रहा है, बल्कि काटन उद्योग भी बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। पांढुर्णा से महज 15 से 25 किमी की दूरी पर बरुड़, नरखेड़ काटोन, जललखेड़ा जैसे गांव आते हैं, जो महाराष्ट्र राज्य में हैं। जहां किसान महज 60 पैसे कर चुका रहा है। पांढुर्णा में 6 जिनिंग फैक्ट्री संचालित थी, जिसमें 2015 से लेकर 2017 तक 3 जिनिंग फैक्ट्री संचालित हैं। जिसमें से दो फैक्ट्री भी बंद होने की कगार पर हैं। 2015 में दो लाख गांठ का उत्पादन हुआ, लेकिन 2017 तक महज 75 हजार गांठ का ही उत्पादन हुआ है। 2018 में स्थिति और खराब हो गई है। अगर 2018 के अंत तक की भी बात करे तो स्थिति में कोई बड़ा इजाफा होगा नहीं। इसी वजह से तीन में से दो फैक्ट्री भी बंद की कगार पर पहुंच गई है। तीन का ही हो रहा संचालन पांढुर्णा में आधा दर्जन से ज्यादा फैक्ट्री संचालित होती थीं। जिसमें से एचके काटन, श्रीनाथ काटन, पालीवाल इंडस्ट्रीज, पारसनाथ काटन, एचके काटन संचालित हैं। हरेराम काटन और बाफना काटन लोन के कारण बंद हो चुकी हैं, जबकि एचके काटन भी बंद हो चुकी है। जबकि श्रीनाथ काटन और एचके काटन बंद होने की कगार पर हैं। सिर्फ पालीवाल काटन ही ऐसी फैक्ट्री है जो संचालित होने की स्थिति में है। उद्योगपतियों का कहना है कि फैक्ट्री संचालित करने में सबसे बड़ी समस्या इसलिए हो रही है, क्योंकि महाराष्ट्र के काटन में ज्यादा नमी होती है। लिहाजा वो काटन यहां खरीदा नहीं जाता। टैक्स कम होने के कारण यहां के व्यापारी बाहर काटन बेचने चले जाते हैं। शासन को हो रहा नुक्सान पांढुर्णा में उगने वाली कपास का फायदा पेटी व्यापारी उठा रहे हैं। ये किसानों से छोटे स्तर पर फसल खरीदते हैं और महाराष्ट्र में ले जाकर बेच देते हैं। यही वजह है कि शासन को राजस्व का नुकसान हो रहा है। इस स्थिति को लेकर व्यापारियों को तो फायदा हो जाता है। महाराष्ट्र की तुलना में मप्र की कपास में नमी कम होती है, जिसके कारण लोगों को इसका फायदा मिलता है।