मप्र में कैलाश विजयवर्गीय को दिया फ्री हैंड

मप्र में कैलाश विजयवर्गीय को दिया फ्री हैंड

प. बंगाल के साथ ही मप्र में भी कलम खिलाने की जिम्मेदारी

अघोषित तौर पर आलाकमान ने मप्र में विजयवर्गीय को दिया फ्री हैंड

भोपाल। केंद्र में भाजपा की सरकार बनवाने की जिम्मेदारी जिन नेताओं पर है उनमें भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का भी नाम शामिल है। प. बंगाल का प्रभारी होने के कारण विजयवर्गीय पर जहां वहां की 42 संसदीय सीटों की जिम्मेदारी है, वहीं अपने गृह प्रदेश की 29 संसदीय सीटों को भी जीताने की जिम्मेदारी है। इसलिए भाजपा आलाकमान ने अघोषित तौर पर मप्र में भी विजयवर्गीय को फ्री हैंड कर दिया है। भाजपा सूत्रों के अनुसार, मप्र की राजनीति में अजेय रहे कैलाश विजयवर्गीय पर भाजपा आलाकमान को विश्वास है कि वे अपनी रणनीति से दोनों राज्यों में भाजपा को अधिक से अधि सीटें जीताकर किंगमेकर बनेंगे। प. बंगाल में बड़े उलटफेर की संभावना विजयवर्गीय जब से प. बंगाल के प्रभारी बने हैं, वहां भाजपा लगातार मजबूत होती जा रही है। लोकसभा चुनावों में प्रदेश भाजपा की निगाहें राज्य की 42 में से 26 लोकसभा सीटों पर हैं। फिलहाल उसके पास केवल दो सीटें हैं। लेकिन विजयवर्गीय ने सभी सीटों पर भाजपा का जनाधार बढ़ाया है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि प. बंगाल में इस बार बड़ा उलटफेर हो सकता है। अभी तक अजेय यात्रा भाजपा के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने सियासी जीवन में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 13 मई, 1956 को जन्मे विजयवर्गीय पहली बार इंदौर के मेयर चुने गए थे और उसके बाद से संसदीय राजनीति में वह लगातार आगे ही बढ़ते रहे। इस क्रम में उन्होंने अपने नाम से एक रिकॉर्ड भी दर्ज किया है। उन्होंने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कभी हार का मुंह नहीं देखा। 12 साल तक राज्य में मंत्री का पद संभालने के बाद अब वह संगठन में राष्ट्रीय स्तर की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। केंद्रीय राजनीति तक की यात्रा अक्सर अपने बयानों की वजह से चर्चा में रहने वाले विजयवर्गीय को 2014 में भाजपा का हरियाणा चुनाव प्रचार का प्रभारी बनाया गया, जहां भगवा पार्टी ने बहुमत हासिल किया। हरियाणा में भाजपा को जीत दिलाने के बाद उन्हें पार्टी में केंद्रीय भूमिका के लिए चुना गया और 2015 में अमित शाह ने उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त कर दिया। साथ ही पश्चिम बंगाल में पार्टी का प्रभारी बना दिया गया, जहां भाजपा को खोने के लिए कुछ नहीं था और हासिल करने को पूरा आसमान पड़ा हुआ था। विजयवर्गीय के नेतृत्व में पार्टी ने बंगाल में बढ़त भी हासिल की है। इंदौर में राजनीतिक करियर शुरू करने की कहानी से पहले विजयवर्गीय के छात्र जीवन की भी एक सियासी यात्रा है। दरअसल उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1975 में उसी दिन ही कर दिया था, जिस दिन वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छात्र ईकाई एबीवीपी से जुड़े थे। एबीवीपी के रास्ते वह राजनीति की गहराई में गोते लगाते गए। 1983 में वह इंदौर नगर निगम के मेयर और 1985 में स्थायी समिति के सदस्य चुने गए। बाद में वह भारतीय जनता युवा मोर्चो (भाजयुमो) के राज्य सचिव बने। बाद में उन्हें इंदौर और बीजेपी के विधि प्रकोष्ठ का स्टेट को-ऑर्डिनेटर बनाया गया। 1985 में ही वह विद्यार्थी परिषद के स्टेट कॉर्डिनेटर भी बने। लगातार जीतने का रिकॉर्ड विजयवर्गीय ने 2013 के विधानसभा चुनाव में महू विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस उम्मीदवार अंतर सिंह दरबार को 12,216 वोट से हराकर लगातार छह बार विधानसभा चुनाव जीतकर अजेय रहने का रिकॉर्ड कायम किया था। विजयवर्गीय को 89,848 वोट मिले थे, जबकि उनके प्रतिद्वन्द्वी दरबार को 77,632 मतों से संतोष करना पड़ा था। वहीं 2008 के विधानसभा चुनावों में महू क्षेत्र से विजयवर्गीय और दरबार आमने-सामने थे। इन चुनावों में विजयवर्गीय ने दरबार को 9,791 मतों से मात दी थी। वह लगातार 1990, 1993, 1998, 2003, 2008, और 2013 के विधानसभा चुनावों में विधायक चुने जाते रहे हैं। विजयवर्गीय को भाजपा का कद्दावर नेता माना जाता है।