MP की सत्ता में वापसी के लिए करिश्मे की तलाश में राहुल गांधी

MP की सत्ता में वापसी के लिए करिश्मे की तलाश में राहुल गांधी

निमाड़
ये वहीं शबे मालवा है जिसे मुगलों ने सुबहे बनारस, शामे अवध और शबे मालवा कहते हुए खास शान बख्शी है. यहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपने दो दिन के चुनावी अभियान पर है. कुछ अलग और अनोखे अंदाज में. राहुल दरअसल यहां न सिर्फ अपने पिता राजीव गांधी के करिश्मे को हासिल करना चाहते हैं, बल्कि अपनी दादी इंदिरा गांधी की तरह उज्जैन के महाकाल मंदिर दर्शन से सॉफ्ट हिंदुत्व पर लौट रही कांग्रेस का मैसेज भी दे रहे हैं.

आज यह इलाका कांग्रेस के लिए मुश्किल भरा है. लेकिन एक वक्त ऐसा था जब 1991 में राजीव गांधी ने अपना जबरदस्त चुनाव प्रचार करते हुए इंदौर में रोड शो किया था. कई चश्मदीद कहते हैं कि यह चुनावी नजारा नहीं बल्कि एक करिश्मा था. जिसे कई दशकों बाद आज भी याद किया जाता है. राजीव को देखने के लिए सड़कों पर उमड़ती भीड़ और जगह-जगह रुककर उनका रेंगता हुआ सा काफिला. जिसने पूरे शबे मालवा और निमाड़ के पठार को गरमी से भर दिया था. यह उस दौरे का ही असर था कि उसके बाद कांग्रेस का हर नेता यहां से अपनी ताकत बढ़ाता दिखाई दिया. 1993- 1998 के चुनाव में दिग्विजयसिंह ने जब सत्ता में वापसी की तो एक दशक तक कांग्रेस को यहां से कोई हिला नहीं पाया.

2003 तक मालवा-निमाड़ में लाख कोशिशो के बाद भी बीजेपी अपनी जड़े नहीं फैला पाई . जिस तरह देश की राजनीति में दिल्ली का रास्ता लखनऊ से होकर गुजरता है. उसी तरह मध्यप्रदेश में सत्ता में वापसी मालवा-निमाड़ का इलाका तय करता है. प्रदेश की कुल 47 आरक्षित सीटों में से 31 सीटें मालवा-निमाड़ में हैं. प्रदेश के 22 प्रतिशत आदिवासी मतदाताओं में से सत्तर फीसदी इस इलाके में हैं. पिछले 15 सालों से यह पूरा इलाका कांग्रेस की कमजोर कड़ी बन चुका है. बीजेपी ने 2013 के चुनाव में एससी एसटी की 25 सीटें हथियाकर कांग्रेस को जबरदस्त पटकनी दी है. 2014 में तो कांग्रेस का यहां से पूरा सूपड़ा ही साफ हो चुका है. हारी हुई विधानसभा सीटों को भी बीजेपी ने अपनी ताकत से हथिया लिया है.

राहुल एक रणनीतिक योजना के साथ मालवा-निमाड़ के दौरे पर हैं. मालवा-निमाड़ कांग्रेस के लिए खास राजनीतिक मायने रखता है. मध्यप्रदेश का यह संपन्न इलाका कई खूबियां रखता है. प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर इस क्षेत्र में है. जहां से प्रदेश का सत्तर फीसदी बिजनेस संचालित होता है. सवा सौ से ज्यादा हवाई सेवाएं देने वाले इस शहर में राहुल पूरे दो दिन हैं. वे यहां पर प्रोफेशनल्स और आंत्रप्रेन्योर के साथ भी संवाद करने वाले हैं. कृषि में अव्वल मालवा सोयाबीन में पूरे देश में धाक रखता है. सोयाबीन का विदेशी बाजार यह इलाका तय करता है. प्रदेश की सत्तर फीसदी आदिवासी आबादी भी यहीं पर है. चालीस प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण इलाके वाले मालवा–निमाड़ की कुल 66 विधानसभा सीटों का गणित जातिगत वोट से तय होता है. शहरों को चुनावी लहर तो गांवों में स्थानीय ताकत मायने रखती है.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि मालवा- निमाड़ चुनाव का माहौल बनाता है. राहुल का दौरा पूरे प्रदेश के चुनाव का ट्रेंड सेट कर देगा. यहां से उठती आवाज पूरे प्रदेश में गूंजती है. इसी को ध्यान में रखते हुए पूरे दो दिनों का दौरा रखा गया है. इस दौरान वे धार-खरगोन जैसे आदिवासी पट्टी में कार्यकर्ताओं में जोश भरेंगे वहीं पर दलित वोट्स पर फोकस करते हुए वे महू आंबेडकर स्थल पर भी जाएंगे. पूरे प्रदेश में 15 प्रतिशत से ज्यादा दलित वोट है. कई नेताओं का मानना है कि अपनी दादी और पिता की तरह राहुल वह करिश्मा शायद ही दिखा पाएं. पिछले 15 सालों से कांग्रेस यहां सत्ता से बेदखल है. लेकिन उनके इस दौरे ने चुनावी हलचल तो पैदा कर दी है.