आज भी कायम है भाईदूज की सदियों पुरानी परंपरा

आज भी कायम है भाईदूज की सदियों पुरानी परंपरा

 
इंदौर

समय के हिसाब से त्योहार मनाने के तौर-तरीके बदल रहे हैं, लेकिन हम अब भी उन परंपराओं के साथ जुड़े हुए हैं, जो हमारे पुरखों द्वारा वैज्ञानिक और तार्किक कसौटी के आधार शुरू की थीं। ये कहना है श्रीकांत जमींदारजी का। इंदौर की रॉयल फैमिली के मुखिया कहते हैं कि अमूमन भाई दूज का त्योहार तब आता है, जब वातावरण में गुलाबी ठंडक घुलने लगती है। इस आती ठंड और बदलते मौसम के सीजन में स्वास्थ्य का खास खयाल रखना चाहिए।

इसीलिए हमारे यहां भाई दूज पर गुड़ के गुलगुले, मालपुए और पूड़ियां खासतौर पर बनाने का रिवाज है। क्योंकि गुड़, खासतौर पर ठंड में स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होता है। ये न केवल भोजन को स्वादिष्ट बनाता है, बल्कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है। अमूमन इसी सीजन में नया गुड़ भी बनने लगता है। इसलिए भाई दूज से इसका इस्तेमाल शुरू कर पूरी सर्दियों में इसके तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं।

 
जमींदार के मुताबिक पहले हमारे यहां आसपास के 52 गांवों के लोग दीये और रुई लेकर आते थे। जिन्हें हम वापसी में घी, गुड़ और कपड़े भेंट करते थे। लेकिन वक्त के साथ अब चंद दूरदराज गांवों के लोग ही रुई और दीए लाते हैं। दरअसल, ये परंपरा हमारी परस्पर की साझेदारी और आपसी रिश्तों को बढ़ाने के लिहाज से शुरू की गई थी। इसलिए हम सांकेतिक रूप से इसे अब भी जारी रखे हुए हैं। भाईदूज से एक दिन पहले गोवर्धन पूजा होती है। उस दिन रॉयल फैमिली में भगवान को 56 भोग लगाकर गौ-धन का श्रृंगार किया जाता है। पहले पाड़े लड़ाई आकर्षण का केंद्र हुआ करती थी मगर उसमें कई बार बेजुबान पशु बहुत बुरी तरह से घायल हो जाते थे। जिसे देखते हुए मेरे पिताजी ने ये परंपरा करीब 70 साल पहले बंद करवा दी।