जानिए महिलाओं को होने वाले इन 5 सिस्ट के बारे में
यह एक तरह से भरी थैली है, जो अंडाशय में हो जाती है। इसके लक्षण पेट फूलना या सूजन, दर्द भरा मल त्याग, मासिक धर्म से पहले या उसके दौरान पेडू में तेज दर्द, संभोग के दौरान दर्द, पीठ के निचले हिस्से या जांघों में दर्द, स्तन में कोमलता का अहसास, नॉजिया व उल्टी के तौर पर नजर आते हैं।
एंडोमेट्रियोसिस
इसमें खून से भरा सिस्ट बन जाता है, जो बांझपन, माहवारी एवं सेक्स में दर्द का कारण बनता है। लैप्रोस्कोपिक इलाज में मरीज को केवल एक दिन के लिए अस्पताल में रहना पड़ता है, उसे किसी तरह का दर्द नहीं होता और न ही इलाज के दौरान खून निकलता है। आजकल सिस्ट के इलाज में कार्बनडाइऑक्साइड लेजर का प्रयोग किया जाता है, जिससे आस-पास के अंगों पर प्रभाव नहीं पड़ता है।
स्तन सिस्ट
स्तन की अधिकतर गांठें कैंसर निरोधी होती हैं। इसके कई कारण होते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि महिलाओं को यह जानकारी होनी चाहिए कि उनके स्तन सामान्यतौर पर कैसे दिखते हैं। अगर वे इसमें किसी तरह का बदलाव महसूस करती हैं तो डॉक्टर से मिलना चाहिए।
पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम
अनियमित मासिक धर्म, मुहांसे या फेशियल हेयर का अधिक होना, बांझपन, वजन का जरूरत से ज्यादा बढ़ जाना इसके लक्षण हैं। कुछ महिलाओं की गर्दन के आस- पास की त्वचा का रंग गहरे बैंगनी रंग का भी हो जाता है। शुरुआत में गर्भपात और बाद में डायबिटीज एवं यूटेरिन कैंसर होने का खतरा बन जाता है। समय पर जांच होने पर, इसके इलाज में सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ती। बेहतर डाइट और नियमित व्यायाम इसके प्रबंधन के लिए जरूरी है। वजन कम करने के लिए कई दफा मरीज को बैरियाट्रिक सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है। मरीज की प्राथमिकताओं के अनुरूप उसे दवा दी जाती है।
अंडाशय में सिस्ट
इस सिस्ट के 20- 30 फीसदी मामलों में कैंसर में तब्दील होने का खतरा रहता है। एमआरआई स्कैन, अल्ट्रासाउंड और तमाम तरह के रक्त परीक्षण से पता चलता है कि कैंसर होने की आशंका है या नहीं। सिस्ट पूरी तरह ठोस है, या उसमें पानी भरा है तो कैंसरयुक्त हो सकता है। मासिक धर्म शुरू होने के समय और 60-70 की उम्र में सिस्ट के कैंसरयुक्त होने का खतरा रहता है। लेकिन अच्छा यह है कि सर्जरी से 100 फीसदी कैंसर का खात्मा हो सकता है। हालांकि, कुछ कैंसर एडवांस भी होते हैं, क्योंकि इनका कोई लक्षण नहीं होता। ये लक्षण बुढ़ापे में होते हैं। मेनोपॉज के बाद महिलाओं को सालाना स्वास्थ्य की जांच करानी चाहिए।