तोपों के गोलों से बचते हुए पहाड़ों पर चढ़े थे वीर सैनिक
दानापुर
कश्मीर में डलझील के मानस बल में फस्ट बिहार बटालियन अपना डेरा डाले हुई थी। घाटी की बर्फ बारी और ऊंचे ऊंचे पहाड़ों पर उगे पेड़ों की डालियों से गिरते बर्फ के टूकड़े को देखकर सैनिक फुले नहीं समा रहे थे। सैनिक बर्फवारी का आनंद ले रहे थे। तभी 8 मई 1999 को अचानक फस्ट बटालियन को बटालिक सेक्टर कुच करने का निर्देश प्राप्त हो गया। फरमान जारी होते ही सैनिकों ने अपने अपने आशियाना समेट लिए और रात के अंधेरे का चीरते हुए गाड़ियों का काफिला बटालिक सेक्टर को कुच कर गया। रास्ते में दुश्मनों के घुसपैठ करने की खबर मिलने पर गाड़ियों की लाईट बुझा दी गई। ताकि दुश्मनों को गाड़ियों के आने की भनक नहीं लग सके। तभी आगे चल रही गाड़ी एक गड्ढ़े में जाकर फंस गई। जिसे सावधानी पूर्वक निकाला गया। जैसे तैसे काफिला सुबह में बटालिक सेक्टर पहुंचा। जहां पहुंचते ही अधिकारियों ने पाकिस्तानी सेना द्वारा कारगिल क्षेत्र में घुस आने की खबर दिए और कई टुकरियो में जवानों को बांटते हुए एक प्लानिंग के तहत दुश्मनों पर हमला बोले की चक्रव्युह रची गई। ऊंचे ऊंचे पहाड़ों पर दुश्मन डेरा डाले हुए थे। नीचे भारतीय सैनिक मोर्चा लेने को तैयार थे।
तत्कालीन सुबेदार योगेन्द्र कुमार उपाध्याय ने बताया कि बटालिक सेक्टर से दारचीक ब्रीज के रास्ते जुबरहील पोस्ट को कब्जा करना था। पहाड़ो की चोटियों पर कब्जा जमाये बैठे दुश्मन लगातार फायरिंग करते और तोपों से गोले बरसाते जा रहे थे। ऐसे में पहाड़ों पर चढ़ना बहुत ही मुश्किल हो रहा था। सीओ ओपी यादव के दिशा निर्देश में जवान आगे बढ़ते गए। दारचीक ब्रीज गांव पहुंचते ही मोर्चा बंदी हो गई। भारी गोलीबारी और तोपो से गोले बरसाये जाने लगे। 18 दिनों तक लड़ाई के बाद जुबरहील पोस्ट पर कब्जा किया गया। लड़ाई शुरू होने के दो दिन तक खाने व पीने को कुछ नहीं मिला। जिसके पास जो कुछ पहले से था वहीं खाया और पिया। दो दिन के बाद से हेली कॉपटर से खाने के पैकेट गिराये जाने लगे। नई जगह रहने से रास्ते व मौसम को लेकर भारी परेशानी का सामना करना पड़ा था।
जुबरहील पोस्ट पर कब्जा किया गया तो वहां पाकिस्तानी सैनिकों के एक दर्जन के आसपास शव और ढ़ेरों हथियार जहां तंहा पड़े हुए थे। जुबरहील के बाद फस्ट बटालियन को थारू पोस्ट काला पत्थर को कब्जा करने के लिए फरमान जारी हुआ। फरमान मिलते ही काला पत्थर की ओर बढ़ गए। सीमा क्षेत्र में पहुचते ही फिर लड़ाइ्र शुरू हो गई। 7 जुलाई की रात को काला पत्थर पर बिजयी पताका फहरा दिया गया। श्री उपाध्याय ने बताया कि फस्ट बिहार बटालियन के जवानों ने 8 जुलाई को विजय दिवस मनाया और उस समय से फस्ट बिहार 8 जुलाई को ही विजय दिवस मनाते आ रही है। लड़ाई समाप्त होने के बाद करगिल क्षेत्र में दो वर्ष रहकर वहां के आवागमन से लेकर अन्य व्यवस्थाओं को ठीक किया गया। उसके बाद उपाध्याय को सुबेदार मेजर में प्रोमोशन करते हुए बीआरसी भेजा गया। भोजपुर जिले के बीलुटी थाना के नारगादा निवासी उपाध्याय ने बताया कि भारतीय सैनिकों में सेवानिवृत के बाद भी देशप्रेमा का जज्बा कायम रहता है। भारतीय सेना पहले से अपेक्षा और सुदृढ हुई है।