नशाखोरी के आंकड़े बता रहे 'उड़ता पंजाब' नहीं 'उड़ता यूपी'

लखनऊ
नशे की समस्या पर आधारित एक फिल्म आई थी 'उड़ता पंजाब', इसमें पंजाब में फैले ड्रग्स और नशाखोरी के जाल को दर्शाया गया था। आंकड़ों पर यदि गौर करें तो हालात 'उड़ता पंजाब' की जगह 'उड़ता यूपी' वाले नजर आ रहे हैं। नशीले पदार्थों के सेवन और उसकी समस्या पर हाल ही में आई राष्ट्रीय सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक, नशे के शिकार लोगों की सर्वाधिक संख्या उत्तर प्रदेश में है। सर्वेक्षण के अनुसार देश में गांजे की लत के शिकार लोगों में से 38 फीसदी अकेले यूपी से हैं।
प्रत्येक वर्ष 26 जून को नशीले पदार्थों के दुरुपयोग और उनकी तस्करी के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस के रूप में मनाया जाता है। करीब तीन दशक से चल रहे आयोजनों की शृंखला के बाद भी तस्वीर भयावह दिखती है। ईओडब्ल्यू (आर्थिक अपराध अनुसंधान संगठन) के डीजी और नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, नई दिल्ली में पांच साल तक डेप्युटी डायरेक्टर रह चुके डॉ. राजेंद्र पाल सिंह कहते हैं कि यूपी में नशे का जाल बुरी तरह से फैला है। इस मामले में समय रहते प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है।
क्या है यूपी का डेटा?
नशे पर हुए राष्ट्रीय सर्वेक्षण के हवाले से वह बताते हैं कि देश में करीब 73 लाख लोग गांजे और भांग की लत से गंभीर रूप से ग्रसित हैं। इसमें 28 लाख लोग यूपी के हैं। हेरोइन और अफीम जैसे नशे की बात करें तो 77 लाख लोग इससे बुरी तरह से प्रभावित हैं। इनमें करीब 11 लाख लोग यूपी से हैं। पंजाब में यह संख्या सात लाख है।
'किशोर भी हो रहे नशे का शिकार'
डॉ. राजेंद्र कहते हैं कि सर्वे में खतरनाक ट्रेंड यह दिख रहा है कि किशोरों में नशे की लत बढ़ रही है। खासकर इनमें इन्हेलेंट्स (सूंघने वाला नशा) का प्रयोग तेजी से बढ़ा है। प्रदेश में करीब 1 लाख बच्चों को इन्हेलेंट्स संबंधी समस्या के लिए सहायता और इलाज की जरूरत बताई गई है। सेडटिव ड्रग्स और इन्हेलेंट्स लेने वाले अधिकतर बच्चे या तो बेघर हैं या गली-मोहल्लों में अधिक वक्त बिताते हैं। प्रदेश में करीब 20 लाख लोग नशीली दवाइयों मसलन नींद की गोलियां, कोडीन सल्फेट युक्त सिरप जैसे सेडटिव ड्रग्स के आदी हैं। सर्वे के अनुसार, इनमें करीब 3.5 लाख लोगों को इलाज की जरूरत है।
"नशे से बचाने के लिए कानून सख्त किए जाने की जरूरत है, लेकिन सबसे प्रभावी उपाय जागरूकता, परिवारों की सजगता और सहयोग है। इससे नशे के दुष्प्रभाव के प्रति लोगों को न केवल सचेत किया जा सकता है बल्कि इस अवैध कारोबार की सूचना भी नियामक संस्थाओं तक पहुंचाई जा सकती है।"
-डॉ. राजेंद्र पाल सिंह, डीजी, ईओडब्ल्यू और ड्रग एक्सपर्ट
'कमजोर कानून को पुख्ता बनाने की जरूरत'
ड्रग्स की समस्या पर लंबे समय तक काम कर चुके डॉ. राजेंद्र कहते हैं कि इस दिक्कत के लिए जागरूकता के साथ कानून को मजबूत बनाने की आवश्यकता है। मसलन, सेडटिव ड्रग्स को रोकने के लिए जो कानून बने हैं, उसमें साफ है कि बिना डॉक्टर के पर्चे के इससे जुड़ी दवाइयां न दी जाएं। इसके बाद भी मेडिकल स्टोर संचालक कुछ पैसों के लालच में दवाएं दे देते हैं। इस जुर्म की सजा भी मामूली है। महज कुछ दिनों के लिए लाइसेंस रद्द किया जाता है। इससे प्रभावी अंकुश नहीं लग पाता है।