विदेश मंत्री एस. जयशंकर की नई किताब लॉन्च, द इंडिया वे में भारत-चीन-पाकिस्तान-अमेरिका का जिक्र  

विदेश मंत्री एस. जयशंकर की नई किताब लॉन्च, द इंडिया वे में भारत-चीन-पाकिस्तान-अमेरिका का जिक्र  

 
नई दिल्ली 

शतरंज की बिसातों में निमज़ो-इंडियन डिफेंस को काफी सोलिड माना जाता है. यानी इन चालों से जिसने सामने वाले को मात दे दी और उसे अपनी चालों में फंसा दिया, तो वही असली सिकंदर है. मई के महीने से भारत और चीन के बीच सीमा पर कुछ ऐसा ही हो रहा है, एक चाल चीन चलता है तो फिर भारत उसका जवाब देता है. मई में चीन लाइन ऑफ कंट्रोल की तरफ आया, तो जून में हिंसक झड़प में भारतीय जवान शहीद हो गए और फिर अगस्त में फिर माहौल बिगड़ा. इन सभी घटनाओं के बीच देश के विदेश मंत्री और पूर्व में विदेश नीति के अहम अफसर रहे एस. जयशंकर की किताब आई है. बीते दिनों एस. जयशंकर की किताब ‘द इंडिया वे’ रिलीज़ हुई है, जिसमें उन्होंने अपने अनुभवों को साझा किया है. इसी किताब में एक पूरा चैप्टर चीन के ऊपर भी है, जो कई राजों को खोलता है और परत-दर-परत भारत-चीन के रिश्तों को टटोलता है. 

भारत और चीन के बीच ऐतिहासिक-सांस्कृतिक रिश्ता
एस. जयशंकर ने अपनी इस किताब में चीन के चैप्टर की शुरुआत काफी पुराने पन्नों से की है, जहां चीन और भारत के बीच रिश्तों की शुरुआत, दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक संबंधों पर बात की गई है. किताब के अनुसार, ‘सिल्क रोड के जमाने में जब व्यापार होता था, तब भारत और चीन के संबंध सामने आए थे. जहां बौद्ध धर्म से जुड़े लोग भारत की ओर से शिनझियांग (आज के वक्त में नाम) की ओर जाते थे. उसी दौरान चीनी शासक कई सड़कों के नाम संस्कृत शब्दों पर रखते थे. इसके बाद ये रिश्ता कश्मीर से होते हुए नालंदा तक पहुंचा, जिसका मुख्य लक्ष्य शिक्षा और ज्ञान का प्रसार करना था.’ इस दौरान यहां चीनी दार्शनिक फा शियान, शुआन झांग का भी जिक्र है.

 चीन-नेहरू और 1962 की जंग

विदेश मंत्री की किताब में मौजूदा भारत और चीन के रिश्तों की शुरुआत विश्व युद्ध दो के बाद दिखाई गई है. आजादी के बाद भारत-चीन के रिश्तों की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा काउंसिल में परमानेंट सीट को लेकर हुई जो चीन को मिली. क्योंकि उस दौर में भी भारत, चीन के लिए काफी अहम था. भारत ने तब कोरियन युद्ध-वियतनाम युद्ध में अपनी भूमिका निभाई तो साथ ही अमेरिका को चेताने में काम आ सकता था. किताब के अनुसार, ‘आजादी के बाद चीन-भारत के बीच बॉर्डर को लेकर बातें शुरू हो गई थीं. इस दौरान चीन ने जिस तरह से तिब्बत के साथ व्यवहार किया उसने सबकुछ बिगाड़ दिया. तब अलग तरह की राजनीति चल रही थी, जिसकी वजह से बाद में नेहरू ने भी माना कि चीन की नजर सिर्फ जमीन पर नहीं है बल्कि उसका असली मकसद रौब जमाना है. इसके बाद 1962 की जंग ने चीन के प्रति भारत के लोगों का नजरिया बदल दिया, अब लोगों में चीन के प्रति विश्वास की कमी है. नवंबर 1950 में जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल के बीच इस बात की चर्चा हुई कि चीन के साथ किस तरह के रिश्तें आगे बढ़ाए जाएं. तब से अबतक काफी कुछ बदल गया है, लेकिन इसमें ज्यादातर भारत के लिए अच्छा नहीं रहा.’

चीन और पाकिस्तान के रिश्ते
भारत और चीन के बीच मौजूदा समय में एक खटास इस बात की भी है क्योंकि चीन पाकिस्तान की मदद करता आया है. फिर चाहे वो फंडिंग हो या फिर आतंकियों को बचाना हो. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपनी किताब में भी चीन और पाकिस्तान के रिश्तों पर खुलकर बात की है. किताब में लिखा है, ‘चीन और पाकिस्तान के बीच की दोस्ती हमेशा खटनके वाली लगती है, क्योंकि दोनों देशों में कोई ऐतिहासिक या फिर सांस्कृतिक दोस्ती नहीं है. ऐसे में चीन के दिमाग के टटोलें तो इसका एक ही मकसद है कि वो पाकिस्तान के जरिए भारत के साथ चेक एंड बैलेंस का गेम खेल रहा है. इसका नजारा कई बार दिखा है, जब 1959 में भारत-चीन के रिश्ते बिगड़े तो पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर की ओर माहौल बिगाड़ना शुरू किया. फिर भारत-चीन में 1962 के युद्ध के बाद पाकिस्तान ने 1963 में अपने कब्जे का हिस्सा चीन को सौंप दिया.’ 

किताब के अनुसार, ‘चीन ने 1965 और 1971 की जंग में भी पाकिस्तान की मदद की. युद्ध के बाद दोनों देशों में जमी नहीं, लेकिन बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने चीन का दौरा कर दोनों देशों में माहौल को शांत करने की कोशिशें की. तबतक काफी कुछ बदल चुका था, भारत अमेरिका के नजदीक था, न्यूक्लियर टेस्ट हो गया था.’