सिख दंगों में सज्जन को सजा: जानें, फैसले में दिल्ली हाई कोर्ट ने क्या कहा
नई दिल्ली
दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार को कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को 1984 के सिख दंगों में दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। ट्रायल कोर्ट ने 2013 में सज्जन कुमार को बरी कर दिया था। फैसला सुनाते हुए जस्टिस एस मुरलीधर और विनोद गोयल ने कानूनी प्रक्रिया को मजबूत करने की बात करते हुए कहा कि इस अपराध के दोषियों को सजा दी जाएगी। अपने फैसले में कोर्ट ने कही ये महत्वपूर्ण बातें:
कत्लेआम और न्याय प्रणाली को मजबूत करने के बारे में
- इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दंगे मानवता के खिलाफ अपराधों के "विवरण का जवाब" देते हैं, दिल्ली और बाकी देश में सिखों की हत्या हुई। यह सब कानून का पालन कराने वाली एजेंसियों और राजनेताओं की शय पर हुआ।
- इसमें शामिल अपराधियों ने राजनीतिक संरक्षण का लाभ उठाया और सजा से बचने में कामयाब रहे। ऐसे अपराधियों को कानून के कठघरे में लाना हमारी न्याया प्रणाली के लिए गंभीर चुनौती है।
- भारत में, नवंबर 1984 में हुए दंगों में दिल्ली 2733 और देश भर में 3350 सिखों का कल्तेआम हुआ। यह न तो अपनी तरह का पहला कत्लेआम था और दुर्भाग्य से न ही आखिरी।
- 1947 के बंटवारें के बाद से भारत ऐसे कत्लेआमों से अंजान नहीं रहा है। दिल्ली, पंजाब में बंटवारे के दौरान दंगों मे हुए कत्लेआम की यादें अब भी ताजा हैं। 84 के दंगों में भी ऐसा ही कुछ हुआ था। 1993 में मुंबई में भी ऐसे दंगे देखने को मिले थे। 2002 में गुजरात में, 2008 में ओडिशा में, 2013 में मुजफ्फरनगर में ऐसे ही दंगे हुए हैं। इनमें से ज्यादातर दंगे अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए हुए थे।
निचली अदालत द्वारा सज्जन कुमार को बरी करने पर
- ट्रायल कोर्ट ने 2013 के अपने आदेश में सज्जन कुमार को निर्दोष पाया था, जो 'अवैध था' क्योंकि इसमें गवाहों को दूसरे आरोपियों के लिए विश्वसनीय माना गया लेकिन कुमार ने लिए नहीं।
- बेंच ने कहा कि दूसरे आरोपियों की संलिप्तता के संदर्भ में गवाहों की गवाही को स्वीकार किया गया। लेकिन जब कुमार की संलिप्तता की बात आई तो गवाहों के बयानों पर विश्वास को लेकर ट्रायल कोर्ट ने 'पूरी तरह से यू-टर्न लिया' था।
- ऐसा लगता है कि ट्रायल कोर्ट ने अपराध के बड़े पहलू को 'दरकिनार' किया, क्योंकि वह सीबीआई द्वारा विस्तार से दलील रखे जाने के तथ्य के बावजूद साजिश रचने के आरोपों पर सही से फैसला करने में नाकाम रहा।
- बेंच ने नोट किया कि अभियोजन की तरफ से पेश किए गए 'संदेह से परे' थे, जिससे साबित होता है कि कुमार 'भीड़ के अगुआ' थे और निर्दोष सिखों की हत्या के लिए भीड़ को 'सक्रिय रूप से उकसा' रहे थे।
दिल्ली पुलिस की भूमिका पर
- राष्ट्रीय राजधानी में 1984 के दंगों के दौरान 2,700 से ज्यादा सिखों की हत्या 'अविश्वसनीयता की हद तक नरसंहार' था। दिल्ली पुलिस ने उस वक्त 'बेरुखी' का प्रदर्शन किया और इन क्रूर हत्याओं में उसकी 'सक्रिय भागीदारी' दिखी।
- 'पुलिस ने वास्तव में आंखें बंद कर ली थी और दंगाई भीड़ के अपराध को उकसाया' और उनके द्वारा मामलों की कई गई जांच तो मजाक थी।
- बेंच ने नोट किया कि 1 नवंबर 1984 से लेकर अगले 4 दिनों में सिर्फ दिल्ली कैंट इलाके में 341 मौत होने के बावजूद, केवल 21 एफआईआर दर्ज की गई, इनमें से 15 मौत या हत्या से जुड़ी थी।
- दिल्ली में 5 सिखों की हत्या के मामले का हवाला देते हुए बेंच ने कहा कि लॉ ऐंड ऑर्डर मशीनरी पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी थी और पूरी तरह अराजक स्थिति थी।