जिले के कप्तान को मिली ऐसी विदाई, बैंड बाजे से निकाली बारात

वैशाली
कहते हैं शादी का जोड़ा स्वर्ग मे तय होता है लेकिन बिहार के वैशाली में ये जोड़ी जनता ने बनाई है, वो भी जिले के एसपी की. वो भी दूसरी बार. हुआ ये कि जिले के एसपी साहब का तबादला हुआ. लोगों ने विदाई कार्यक्रम रखा. कार्यक्रम में तय हुआ कि एसपी साहब की शादी कराई जाएगी. उन्हें अपनी पत्नी के साथ फिर से फेरे लेने होंगे. और नए-नवेले जोड़े की तरह विदाई कराई जाएगी.
आईपीएस जीव ही ऐसा होता है. जनता का प्यार कहीं से मिल जाए तो समेटने में सकुचाता नहीं. और फोकट में मिल जाए तब तो दबोच ही लेता है. यहां जनता एक बार शादी करने में लोगों का घर-मकान बिक जा रहा है और वैशाली के एसपी ने दोबारा दंगल मार दिया. आइए बेगम अपना कुछ नहीं लगा है. जो भी है समाज का है और नहीं तो सरकार का है.
फूल मालाओं से लदी हुई कार मौजूद थी. वो कोई सट्टे की गाड़ी नहीं थी. बल्कि एसपी साहब की सरकारी कार थी. विदाई में लेके जाएंगे दुल्हन को. जी हां, दुल्हन.
दरअसल, वैशाली के एसपी राकेश कुमार का तबादला हुआ. जिला छोड़ने लगे तो लोगों ने चरण पकड़ लिए. ऐसे कैसे चले जाएंगे. एसपी साहब दार्शनिक हो गए. जाना तो होगा. और पुलिस वाला दार्शनिक होता है, तो बहुत खतरनाक तरीके से होता है. जनता ने कहा सरकार का दिया सबकुछ तो है आपके पास. हम क्या देंगे. तो शादी करवा देते हैं फिर से. एसपी साहब पहले शरमाएं. फिर भरमाए और इसके बाद तैयार हो गए.
तो सरजी एसपी साहब की पत्नी को फिर से दुल्हन बनाया गया. जयमाल मंगाया गया. स्टेज सजाया गया. बारात बुलाई गई. पंडित बुलवाया गया. फूल वाला. माला वाला. कैमरा वाला. अक्षत वाला. भभूत वाला. दुल्हन मारे शर्म के लाल. धत, ऐसे भी कोई ब्याह करता है दोबारा. एसपी मन ही मन बोले, कर लो. अपना क्या जाता है, जनता का प्यार है.
एसपी के ब्याह में कोई कमी न रह जाए इसलिए बाकायदा बाजे-गाजे के साथ बारात निकली. घोड़े के साथ. धूमधाम से शादी हुई. बारातियों ने छप्पन भोग जीमा और जी भरके आशीष देते हुए लोग घर गए. एसपी हो तो ऐसा.
एसपी साहब की सरकारी गाड़ी डीटीसी की बस हो गई थी. जो आए वही दो फूल फेंक दे. विंड स्क्रीन तक ढंक दी. चारों तरफ खुशबू ही खुशबू. पूरा माहौल महकने लगा. वैशाली में शांति छाई हुई थी. और दूल्हे की गाड़ी बढ़ती जा रही थी.
एसपी साहब की बीवी की विदाई हो रही थी. अब ज्यादा सोचिए मत. इस दुनिया में क्या-क्या नहीं होता. गांधीनगर का पकौड़ा खाइए, अगरतला का पान खाइए और पीक थूकके सोचिए रामराज आ गया.