'हैदराबाद कर्नाटक' क्षेत्र का सियासी समीकरण, क्या कांग्रेस का दबदबा रहेगा कायम?

नई दिल्ली 
कर्नाटक में विधानसभा चुनाव की सियासी बाजी को अपने नाम करने के लिए बीजेपी, कांग्रेस, जेडीएस सहित तमाम पार्टियां पूरी ताकत लगाए हुए हैं. पिछले चुनावों के आंकड़े देखे जाएं तो पता चलता है कि राज्य में वोटिंग का कोई खास पैटर्न नहीं है और न ही किसी एक पार्टी का पूरे राज्य में जादू चलता है. हैदराबाद कर्नाटक क्षेत्र कांग्रेस का मजबूत दुर्ग माना जाता है. बीजेपी इस क्षेत्र में अपने जनाधार को बढ़ाने में जुटी है. ऐसे में दोनों पार्टियों के बीच मुकाबला दिलचस्प हो गया है.

कर्नाटक के उत्तरी हिस्से और आंध्र प्रदेश से सटे हिस्से को हैदराबाद कर्नाटक क्षेत्र के नाम से जाना जाता है. इस क्षेत्र में कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे का मुकाबला है. जबकि जेडीएस का यहां कोई खास आधार नहीं है. इस क्षेत्र में कांग्रेस का सारा दारोमदार मल्लिकार्जुन खड़गे पर है. जबकि बीजेपी के पास इस क्षेत्र में कोई बड़ा चेहरा नहीं है.

हैदराबाद कर्नाटक क्षेत्र में 40 विधानसभा सीटें आती है. कर्नाटक के इस क्षेत्र में 6 जिले आते हैं. इसमें गुलबर्गा, बीदर, रायचूर, बेल्लारी, कोप्पल और यादगीर जिले शामिल है. हैदराबाद कर्नाटक क्षेत्र में लिंगयत, ओबीसी और दलित समुदाय की बड़ी आबादी है.

2013 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में हैदराबाद कर्नाटक की 40 सीटों में कांग्रेस ने 22 सीटों पर जीत दर्ज की थी. बीजेपी का महज 7 और जेडीएस को 6 सीटें मिली थी. येदियुरप्पा की पार्टी को 2 सीटें और बाकी अन्य के खाते में गई थी.

वोट फीसदी के लिहाज से देंखे तो कांग्रेस को 35 फीसदी, बीजेपी 17, जेडीएस को 16 और येदियुरप्पा की पार्टी केजीपी को 14 फीसदी वोट मिले थे.  बीजेपी और येदियुरप्पा की पार्टी के वोटों को मिला देते हैं तो ये आंकड़ा  31 फीसदी हो जाता है.

येदियुरप्पा की बीजेपी में दोबारा में वापसी होने के बाद पार्टी का ग्राफ मजबूत हुआ है. इसी का नतीजा है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस के दुर्ग कहे जाने वाले हैदराबाद कर्नाटक क्षेत्र में कांटे की टक्टर दी है. इतना ही नहीं बीजेपी ने कांग्रेस से ज्यादा वोट हासिल किए थे.

2014 के चुनाव में बीजेपी ने 47 प्रतिशत वोट मिले थे. जबकि कांग्रेस 45 फीसदी और जेडीएस का वोट प्रतिशत गिरकर 2 पर आ गया था. जेडीएस का बड़ा वोटबैंक बीजेपी के संग लोकसभा चुनाव में खड़ा नजर आया था.

2014 के लोकसभा चुनाव के नतीजों के लिहाज से बीजेपी 23 विधानसभा सीटों एक नंबर पर थी. कांग्रेस 17 विधानसभा सीटों पर आगे थी. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के इस मजबूत वोटबैंक में बीजेपी ने बड़ी कामयाबी हासिल की थी.

सिद्धारमैया ने अपने इस गढ़ को मजबूत करने लिए चुनाव से ऐन पहले लिंगायतों को अलग धर्म का दर्जा देकर बड़ा कार्ड चला है. कांग्रेस के लिए अपने पिछले विधानसभा चुनाव में मिली सीट को हर हाल में बरकरार रखने की चुनौती है. जबकि बीजेपी कांग्रेस को उसके गढ़ में पटखनी देने के लिए लिंगायत और ओबीसी वोटरों को हिंदुत्व के नाम पर एकजुट करने में लगी है.