41 सालों से भक्त अब्दुल के सिले कपड़े पहनते हैं 'भगवान कृष्ण'
रायपुर
यदि अब्दुल रसीद भगवान श्री कृष्ण और राधारानी के कपड़े सिलना छोड़ दें तो मुरली मनोहर की छवि और श्रृंगार अधूरा ही रह जाए. पिछले 41 सालों से देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी बांके बिहारी इन्हीं के सिले कपड़े पहनते हैं. देशभर में इस्कॉन के जितने भी मंदिर हैं, उसमें प्राण प्रतिष्ठित भगवान कृष्ण और राधारानी की मूर्तियों को साल भर मुंबई निवासी अब्दुल रशीद के सिले कपड़े पहनाए जाते हैं. अब्दुल के साथ 15 और भी कारीगर हैं, जो मुस्लिम हैं. अब्दुल पिछले 41 सालों से मुंबई इस्कॉन में बतौर प्रमुख टेलर अपनी सेवाएं दे रहे हैं.
साल भर के साथ ही जन्माष्टमी में भी जब ये कपड़े तैयार करते हैं तो उसकी छवि देखते ही बनती है. लोग कहते हैं कि अब्दुल के कपड़े शायद भगवान कृष्ण पर बहुत अच्छे लगते हैं. यही वजह है कि विश्व के कई हिस्सों में मौजूद इस्कॉन मंदिरों में विराजित राधा और रासबिहारी के लिए कपड़े सिलने की इनसे विशेष डिमांड की जाती है. जन्माष्टमी के मौके पर अब्दुल रसीद अपनी टीम के साथ छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के इस्कॉन मंदिर पहुंचे हैं. अब्दुल का कहना है कि धर्म तो एक बराबर ही है. शरीर में खून भी एक है, फिर भेदभाव कैसा.
अब्दुल रशीद ने न्यूज 18 से बातचीत में कहा कि इस्कॉन के संस्थापक प्रभूपाद ने उन्हें ये काम सौंपा और वे इसे कर रहे हैं. अपने समय पर नमाज भी कर लेते हैं. वहीं उन्हें महामंत्र के जाप से भी परहेज नहीं है. अब्दुल से जब न्यूज 18 ने पूछा कि भगवान के कपड़े सिलते वक्त आप के दिमाग में क्या कल्पना होती है तो अब्दुल का कहना था कि खुद कृष्ण और राधारानी ने दर्शन दिए थे. वही दर्शन आज उनके श्रृंगार का आधार है.
अब्दुल इस बार जन्माष्टमी मनाने रायपुर के सेंटर में आए हैं. इस्कॉन के सदस्य कहते हैं कि अब्दुल इस्कॉन के सभी नियमों का पालन करते हैं, साथ ही अपने धर्म का भी. आज तो वे ड्रेस बनाने के भी रुपए नहीं लेते. जब उनके बच्चे छोटे थे तो केवल जरूरत के रुपए लेते थे. इस्कॉन रायपुर के हेड सिद्धार्थ स्वामी का कहना है कि शायद अब्दुल जैसे लोगों से ही यह पता चलता है कि राम हो या रहीम दोनों एक ही हैं, बात आस्था की है जहां मन लग जाए. समाज में सांप्रदायिक सौहार्द कायम करने के लिए अब्दुल रशीद एक नायाब मिसाल हैं.