अतीत की कड़वाहट भूलकर आगे बढऩे की शक्ति देती हैं दुर्गा मां: ब्रह्माकुमारी निकेता दीदी 

अतीत की कड़वाहट भूलकर आगे बढऩे की शक्ति देती हैं दुर्गा मां: ब्रह्माकुमारी निकेता दीदी 

awdhesh dandotia
मुरैना। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय सेवा केंद्र सुख शांति भवन सब्जी मंडी रोड पोरसा में नवरात्रि महोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया गया। जिसमें ब्रह्माकुमारी निकेता दीदी जी ने सभी को ब्रह्मचारिणी माता के बारे में बताया और नवरात्रि का आध्यात्मिक रहस्य बताते हुए कहा। जब महिषासुर ने देवी देवताओं को बंदी बना लिया था, तब भगवान शिव ने आदि शक्ति को प्रकट किया। वह दिव्य अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित थी और अष्टभुजाओं वाली थी। उसने ही महिषासुर के साथ 9 दिन तक युद्ध किया और दसवें दिन महिषासुर का वध करके देवी देवताओं को मुक्त कराया, वही आदिशक्ति है। जिसकी उत्पत्ति प्रकाश से हुई है प्रकाश अर्थात निराकार परमात्मा शिव। सारी शक्तियां इन देवियों ने परमात्मा शिव से ही प्राप्त की है इसीलिए शिव शक्ति भी कहा जाता है। इसीलिए सभी मनुष्य देवियों को कई रूपों में याद करते हैं दुर्गा - दुर्गुणों को नाश करने वाली, काली- काली रूप विकराल परिस्थितियों का सामना करने का प्रतीक है, उमा -अर्थात सब में उमंग उत्साह भरने वाली,  वैष्णो- अर्थात विषियों को मिटाने वाली, संतोषी - अर्थात सर्व को संतुष्ट करने वाली, लक्ष्मी - अर्थात ज्ञान और गुण रुपी संपत्ति की धनी, सरस्वती- अर्थात ज्ञान वीणा सुनाने वाली। 
आठ भुजाएं अष्ट शक्तियों का प्रतीक है। स्वदर्शन चक्र - से सदा स्वयं की कमजोरी का दर्शन कर उन्हें नाश करना, त्रिशूल-  मनवाणी और कर्म द्वारा पांच विकारों पर विजय प्राप्त करने की निशानी है, शंख- परमपिता परमात्मा द्वारा सत्य ज्ञान का शंखनाद करने का प्रतीक है, तलवार -अर्थात ईर्ष्या द्वेष वासना जैसे असुरों को काटना, धनुष बाण- लक्ष्य पर अपना ध्यान केंद्रित कर पुरुषार्थ करना, गदा -जीवन रूपी कुरुक्षेत्र में माया से युद्ध पर विजय प्राप्त करना, कमल पुष्प- अर्थात कीचड़ जैसे संसार में रहते हुए भी अपने आप को कमल पुष्प समान न्यारा और प्यारा अनुभव करना, ज्योति -अर्थात सदा आत्मिक ज्योति जगती रहे। नवरात्रि अर्थात बुराई पर अच्छाई की विजय और जीवन को दिव्य शक्तियों से सुसज्जित करना है। कार्यक्रम में  सुंदर माता की झांकी लगाई गई और नन्हे मुन्ने बच्चों ने नृत्य  प्रस्तुत किये कार्यक्रम के अंत में भोग लगाकर सभी को प्रसाद वितरण किया।

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