विवाह माता-पिता और बेटियों का रिश्ता नहीं तोड़ता, संकट में बेटियों को नौकरी न देना गलत

विवाह माता-पिता और बेटियों का रिश्ता नहीं तोड़ता, संकट में बेटियों को नौकरी न देना गलत

अगरतला। अनुकंपा नियुक्ति को लेकर कोर्ट भी बेटियों के पक्ष में खड़ा हो गया है। त्रिपुरा हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक सुनवाई के दौरान विवाहित बेटियों को इस स्कीम के लिए अपात्र बताए जाने को भेदभावपूर्ण और संविधान के अनुच्छेद 14-16 का उल्लंघन बताया है। चीफ जस्टिस इंद्रजीत महंती और जस्टिस एसजी चट्टोपाध्याय की बेंच ने कहा कि शादी के बाद बेटी का माता-पिता से रिश्ता टूट नहीं जाता है। संकट में उन्हें नौकरी न देना गलत है।

बेंच ने याचिकाकर्ता (पीडि़त विवाहित बेटियों) को राहत देते हुए कहा कि विवाह एक बेटी और उसके माता-पिता के बीच के बंधन को नहीं तोड़ता है जैसे कि यह एक बेटे और उसके माता-पिता के बीच नहीं तोड़ता है। माता-पिता के परिवार का संकट एक विवाहित बेटी को भी समान रूप से परेशान करता है। इसलिए विवाहित बेटी को स्कीम से बाहर करने के पीछे कोई तर्क नहीं है। इसलिए, एक डाई-इन-हार्नेस स्कीम को, चूंकि यह एक विवाहित महिला को अयोग्य मानती है, जबकि विवाहित पुरुष के मामले में ऐसा नहीं है, इसलिए इसे भेदभावपूर्ण माना जाना चाहिए और ऐसी नीति को संविधान के अनुच्छेद 14 से 16 की कसौटी पर परखा जाना चाहिए और इसे वैध नहीं ठहराया जा सकता।