दहेज उत्पीड़न कानून के दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट का निर्देश, सावधानी बरतें, बेगुनाहों की रक्षा करें
नई दिल्ली, देश में कुछ ऐसे कानून हैं, जिनका दुरुपयोग प्राय: देखने को मिलता है। इनमें दहेज उत्पीडन कानून का नाम सबसे उपर है। इस कानून को पति के घरवालों और रिश्तेदारों के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। गुनाह चाहे जिसका भी हो, लेकिन घर के सभी बालिग सदस्यों को आरोपी बना दिया जाता है। इस मामले में जमानत भी मुश्किल से होती है। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में आरोपी को बरी करते हुए अदालतों को सलाह दी है कि वे दहेज उत्पीड़न या दहेज हत्या से जुड़े मामलों सावधानी बरतें। ध्यान रखें कि कोई बेगुनाह परेशान न हो।
दुरुपयोग को लेकर सावधानी बरतने की सलाह
देशभर की अदालतों को दहेज उत्पीड़न के मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने सावधानी बरतने को कहा है। देखा जाता है कि इन मामलों में पति के रिश्तेदारों को अनायास फंसा दिया जाता है। जबकि मामले में मुख्य आरोपी पति होता है। ऐसे मामलों में चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दहेज उत्पीड़न के कई मामलों में आरोपों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है। ऐसे में अदालतों को ऐसे मामलों में सावधानी बरतनी चाहिए ताकि निर्दोष परेशान न हों। जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने दहेज मृत्यु के एक मामले में एक व्यक्ति को बरी करते हुए यह बात कही।
सामान्य और व्यापक आरोप अभियोजन का आधार नहीं हो सकते
बेंच ने कहा कि आरोपी ने मृतका की ननद से अक्टूबर 2010 में शादी की थी। दहेज उत्पीड़न का आरोप पहली बार लगने के बाद उसने शादी की थी। सिर्फ इसलिए उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि उसकी पत्नी को दोषी पाया गया था। बेंच ने कहा कि सामान्य और व्यापक आरोप अभियोजन का आधार नहीं हो सकते।
दहेज उत्पीड़न के आरोपों से बरी किया
एक ऐसे ही मामले में महाराष्ट्र का एक शख्स, जो 3 साल से जेल में बंद था, शीर्ष अदालत ने दहेज उत्पीड़न के आरोपों से बरी कर दिया। इसके अलावा बीड़ में लैब असिस्टेंट के तौर पर वह जो नौकरी कर रहा था, वह भी चली गई थी। उसे दहेज उत्पीड़न केस में दोषी करार दिया गया तो 23 नवंबर, 2015 को उसकी नौकरी ही चली गई थी। ट्रायल कोर्ट की तरफ से शख्स को दोषी करार देने के आरोप को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।
अदालतों को मामलों पर पूरी जांच करनी चाहिए
इसके साथ ही जस्टिस सीटी रवि कुमार और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने कहा, ‘हमारी राय है कि अदालतों को ऐसे मामलों पर पूरी जांच करनी चाहिए। इससे पूरा परिवार झेलता है और बढ़ा-चढ़ाकर लगाए गए आरोपों के चलते उन्हें सजा काटनी पड़ती है। यहां तक कि जो आरोप उन पर लगते हैं, उसके कोई सबूत तक नहीं होते।’
कानून में बदलाव किया जाए
अदालत ने कहा कि 2010 में भी प्रीति गुप्ता बनाम झारखंड सरकार के मामले में हमने ऐसा ही कहा था। कोर्ट ने कहा कि तब सरकार से हमने कहा था कि दहेज उत्पीड़न के कानून में बदलाव किया जाए।
आरोपों की सजा पति और उसके परिवार को भुगतनी पड़ती है
ऐसा इसलिए क्योंकि लड़की वालों की ओर से लगाए गए आरोपों के चलते पति और उसके परिवार को सजा भुगतनी पड़ती है। दरअसल सेक्शन 498ए के तहत दहेज उत्पीड़न का केस तब दर्ज किया जाता है, जब महिला को उसके पति अथवा परिवार या फिर दोनों ने प्रताड़ित किया हो। ऐसा उत्पीड़न दहेज की मांग को लेकर होता है तो इस कानून के दायरे में सजा का प्रावधान है।
समाज में सद्भाव भी बिगड़ रहा
तब कोर्ट ने यहां तक कहा था कि इस कानून का ऐसा दुरुपयोग हो रहा है कि अदालतों में शिकायतें लंबित पड़ी हैं। इसके अलावा समाज में सद्भाव भी बिगड़ रहा है। लोगों की खुशियां छिन रही हैं। इसलिए यह सही वक्त है कि विधायिका विचार करे और कानून में जरूरी बदलाव किए जाएं।
कई बार सच्चाई से परे होते हैं लगाए गए आरोप
वास्तविकता को समझते हुए ये बदलाव करने चाहिए। 14 साल पुराने उस फैसले को ही एक तरह से दोहराते हुए कहा कि आज भी ऐसी ही स्थिति है। बड़े पैमाने पर दहेज उत्पीड़न के मामले सामने आ रहे हैं। कई बार इन मामलों लगाए गए आरोप सच्चाई से परे होते हैं।
सिर्फ रिश्तेदार होने के कारण दोषी नहीं ठहराया जा सकता
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सिर्फ इसलिए किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि वह मामले में दोषी पाई गई महिला का रिश्तेदार है। अदालत ने कहा कि दहेज उत्पीड़न के मामलों में सबूतों के आधार पर ही फैसला लिया जाना चाहिए।