BJP से टिकट पाने के लिए सांसद पिता और विधायक बेटे में छिड़ी जंग

BJP से टिकट पाने के लिए सांसद पिता और विधायक बेटे में छिड़ी जंग

उमरिया
मध्य प्रदेश में चुनावी बिसात बिछ चुकी है. भाजपा, कांग्रेस के साथ दूसरे राजनीतिक दल भी मैदान मारने की पूरी तैयारी कर चुके हैं. इस बार विधानसभा चुनाव में कई रोचक मुकाबले देखने को मिलेंगे. इनमें से एक है उमरिया जिले की बांधवगढ़ विधानसभा सीट का मुकाबला. बांधवगढ़ विधानसभा सीट पर भाजपा से टिकट की दावेदारी के लिए पिता-पुत्र में रोचक मुकाबला चल रहा है. बांधवगढ़ विधानसभा से पिता-पुत्र लगातार चार बार विधायक बनते आए हैं.

भाजपा का गढ़ बनी उमरिया जिले की आदिवासियों के लिए सुरक्षित बांधवगढ़ विधानसभा सीट से टिकट के लिए पिता वर्तमान शहडोल सांसद ज्ञान सिंह और पुत्र वर्तमान बांधवगढ़ विधायक शिवनारायण सिंह के बीच रोचक मुकाबला देखने को मिल रहा है. बांधवगढ़ सीट से ज्ञान सिंह लगातार दो बार और परिसीमन से पहले चार बार विधायक रह चुके हैं. उनके पुत्र शिवनारायण पहली बार पिता ज्ञान सिंह के शहडोल सांसद बनने से खाली हुई सीट पर हुआ उपचुनाव जीतकर विधायक बने थे.

पिता ज्ञान सिंह की जगह विधायक बने शिवनारायण सिंह महज डेढ़ साल ही विधायक रह सके, ऐसे में एक बार फिर चुनाव है, लिहाजा वर्तमान विधायक होने के नाते शिवनारायण टिकट के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं, लेकिन वर्तमान सांसद भी बांधवगढ़ सीट से टिकट पाने के लिए अपनी एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं. पिता-पुत्र के बीच टिकट घमासान से पार्टी को भी नुकसान होने की आशंका जताई जा रही है.

भाजपा जिला अध्यक्ष मनीष सिंह का कहना है कि टिकट देना पार्टी आलाकमान का काम है. उन्होंने दावा किया है कि दोनों में से किसी को भी टिकट मिले, जीत भाजपा की ही होगी. टिकट तय होने के बाद पिता-पुत्र की आपसी नाराजगी पार्टी की चिंता बढ़ा सकती है, जिसे भाजपा भी स्वीकार कर रही है.

बांधवगढ़ सीट पर पिता-पुत्र के लगातार जीत के आंकड़ों से सत्ता से दूर रही कांग्रेस पार्टी भी नये जोश के साथ यहां वंशवाद के मुद्दे को आगे लेकर जाने की तैयारी कर रही है. कांग्रेस नेता त्रिभुवन प्रताप सिंह ने कहा कि भाजपा वंशवाद वाली पार्टी नहीं है तो फिर ये पिता-पुत्र की जोड़ी क्या है? उन्होंने कहा कि वे जनता के बीच जाकर भाजपा के पिता-पुत्र के इस खेल को भुनाकर बांधवगढ़ में जीत हासिल करने का प्रयास करेगी.

बहरहाल भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ने अभी तक अपने-अपने पत्ते नहीं खोले हैं. देखना यह होगा कि इस सियासी गणित में दोनों ही दल टिकट बंटवारे में किसे तरजीह देते हैं, जिससे जनता स्वीकार करे और घर के घमासान को रोका जा सकें.