अब इलाज के नाम पर चूना नहीं लगा सकेंगे निजी अस्पताल

नई दिल्ली 
दिल्ली सरकार ने प्राइवेट अस्पतालों के मनमाने बिलिंग सिस्टम पर ब्रेक लगाने के मकसद से प्रॉफिट कैपिंग पॉलिसी तैयार की है। सरकार ने एक एक्सपर्ट कमिटी की रिपोर्ट के आधार पर अस्पतालों के मनमाने रेट पर कंट्रोल करने का फॉर्म्युला तैयार किया है। रिपोर्ट तैयार करने वाले एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस कैपिंग फॉर्म्युले से बिल में 30 से 40 प्रतिशत तक की कमी आने की उम्मीद है। एक्सपर्ट्स द्वारा तैयार इस फॉर्म्युले से नॉन नैशनल लिस्ट ऑफ इसेंशल मेडिसिन (नॉन NLEM)के रेट्स पर लगाम लगाई जाएगी और अस्पतालों को पर्चेज कॉस्ट से 50 पर्सेंट प्रॉफिट ही रखने के निर्देश दिए जा सकते हैं।
 

सरकार का प्रॉफिट कैपिंग फॉर्म्युला 
अगर सर्जरी ग्लव्ज की कीमत 10 रुपये है तो अस्पताल इसके लिए अधिकतम 15 रुपये ही ले सकते हैं या फिर 2 रुपये की सीरिंज है तो इसके लिए 3 रुपये से ज्यादा नहीं लिए जा सकते। दरअसल कई मामलों में देखा गया कि 10 रुपये के ग्लव्ज की कीमत बिल में 100 से 500 रुपये तक लगाकर दिखाई जाती है। इस खुली लूट को रोकने के लिए सरकार ने प्रॉफिट कैपिंग फॉर्म्युला बनाया है और सरकार का दावा है कि दिल्ली की जनता को इस पॉलिसी का बहुत फायदा होगा। दवाईयों और इलाज में काम आने वाले उपकरणों के रेट फिक्स किए जाएंगे। 

हर चीज का रेट होगा फिक्स 
अगले हफ्ते इस पॉलिसी का ऐलान किया जा सकता है और इस पॉलिसी के आधार पर अस्पतालों के लिए दिशा- निर्देश जारी किए जाएंगे। दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि मामूली सी बीमारी का लाखों रुपये का बिल बिठा दिया जाता है और तरह-तरह के आइटम के रेट MRP से कई-कई गुना अधिक लगाए जाते हैं। इस तरह की प्रैक्टिस पर रोक लगनी चाहिए इसलिए सरकार ने यह पॉलिसी बनाई है। अस्पतालों की कार्यप्रणाली में सुधार करने के मकसद के साथ सरकार ने पिछले साल 9 सदस्यीय एक्सपर्ट कमिटी बनाई थी, जिसकी रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए पॉलिसी बनाई गई है। सरकार ने यह साफ कर दिया है कि प्राइवेट अस्पतालों में मरीजों से दवाईयों की मनमानी कीमत नहीं वसूली जा सकती और न ही अस्पताल की फार्मेसी से ही दवाई खरीदने के लिए मजबूर किया जा सकता है। 

मनमानी कीमत नहीं वसूल सकते 
स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि दिल्ली सरकार प्राइवेट अस्पतालों में खुली लूट और आपराधिक लापरवाही को बर्दाश्त नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि सरकार के पास लगातार शिकायतें आ रही हैं कि दवाईयों में 500 से 1000 पर्सेंट तक का मुनाफा कमाया जा रहा है। इलाज में काम आने वाले सामान की भी मनमानी कीमत वसूली जाती है। इस नई पॉलिसी के आधार पर ऐसा मेकैनिज्म बनाया गया है कि अस्पताल को तय लिमिट में ही दवाईयों की कीमत तय करने का अधिकार मिले। अस्पताल अगर कोई दवा 100 रुपये की खरीदता है तो इसके लिए वह 120 या 125 रुपये तक ले सकता है लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए कि 100 रुपये की दवाई 1000 रुपये में मरीजों को दी जाए। परचेज प्राइस पर प्रॉफिट तय किया जाना चाहिए। 

नैशनल लिस्ट से ही लिखी जाए दवा 
दिल्ली सरकार चाहती है कि केंद्र सरकार की नैशनल लिस्ट ऑफ इसेंशल मेडिसिन से ही दवाई लिखी जाए। इस लिस्ट में करीब 466 दवाईयों की लिस्ट है और इस लिस्ट के हिसाब से बीपी की दवाई 2-3 रुपये तक की होती है लेकिन उसी सॉल्ट की दवाई 20 रुपये में दी जाती है। दिल्ली सरकार का कहना है कि इस प्रैक्टिस पर रोक लगनी चाहिए। सरकार ने ओवरबिलिंग, भर्ती से मना करना, हेल्थ केयर वर्कर्स के बर्ताव की समीक्षा की है और सूत्र बताते हैं कि एक प्रोटोकॉल भी पॉलिसी का हिस्सा होगा। पिछले साल एक प्राइवेट अस्पताल के बिल को लेकर काफी हंगामा हुआ था। उस अस्पताल के 16 लाख के बिल में करीब 9.17 लाख दवाईयां और टेस्टिंग के थे जबकि डॉक्टर की फीस सिर्फ 3 पर्सेंट थी। उनका कहना है कि डॉक्टर्स भी चाहते हैं कि ऐसी कैपिंग हो क्योंकि इससे मरीजों को भी आसानी होगी और सिस्टम भी पारदर्शी होगा।