छत्तीसगढ़ के वन क्षेत्र में उपलब्ध वनोपज से लोगों के जीवन में लाएं बदलाव, मिले रोजगार और जीवन बने उन्नत : भूपेश बघेल

रायपुर
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आज अटल नगर स्थित अरण्य भवन में वन विभाग के कार्यो की विस्तार से समीक्षा की। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में समृद्ध वन क्षेत्र हैं और यहां बहुतायत से वनोपज उपलब्ध है। वन विभाग के अधिकारी अपने कार्यो और कार्यशैली से वनांचलों में रहने वाले लोगों का भरोसा जीते। वनोपजों का उपयोग इस तरह किया जाए जिससे बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिले और वहां के नागरिकों का जीवन उन्नत बनें, उनके जीवन में बदलाव आये। ऐसे कार्यो से नक्सल जैसी समस्या को दूर करने में भी मदद मिलेगी।
बैठक में वन मंत्री मोहम्मद अकबर, वन विभाग के अपर मुख्य सचिव श्री सी.के. खेतान, प्रधान मुख्य वन संरक्षक श्री राकेश चतुर्वेदी सहित वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी और वन मंडलों के वनमंडलाधिकारी मौजूद थे।
बैठक में मुख्यमंत्री ने वन विभाग के मैदानी अधिकारियों से पूछा कि वनों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए क्या किया जा रहा है ? अभी तक प्रदेश में वनोपज पर आधारित कितने लघु उद्योग स्थापित किए गए है ? वनोपज पर आधारित कौन-कौन सी औषधियां बनाई जा रही है? कल्लू गोंद, महुआ और चरोटा बीज से क्या-क्या उत्पाद बनाया जा सकता है ? यह बताएं जाने पर कि चरोटा बीज से ऑयल बनता है, जिसका उपयोग कास्मेटिक सहित अन्य उपयोग में लाया जा सकता है।
मुख्यमंत्री ने छत्तीसगढ़ में बहुतायत से इस तरह के उपलब्ध वन उत्पादों और उनके प्रसंस्करण को बढ़ावा देने को कहा। उन्होंने पूछा कि नारायणपुर के समीप आंवला के कितने जंगल हैं और उसमें उत्पादन कितना होता है ? इनके प्रोसेंिसंग के लिए कितनी प्राईवेट कम्पनियां छत्तीसगढ़ में कार्य कर रहें है। उन्हें सुविधाएं, जमीन आदि देकर यहां उत्पादन करने के लिए बढ़ावा क्यों नहीं दिया जा रहा है? मुख्यमंत्री ने अधिकारियों से पूछा कि बस्तर में बड़ी संख्या में उत्पादित होने वाली ईमली से क्या-क्या बना सकते हैं, यह बताएं जाने पर कि इसके बीज से स्टार्च भी बनता है। उन्होंने पूछा की इसके लिए छत्तीसगढ़ में प्लांट क्यों नहीं लगाया जा सकता। मुख्यमंत्री ने बस्तर के सभी वनमंडलाधिकारियों को ईमली के प्रसंस्करण तथा उपयोगिता को दृष्टिगत रखते हुए एक माह के भीतर इसका प्लॉन बनाने को कहा।
मुख्यमंत्री ने वनोपज पर आधारित औषधी बनाने तथा अन्य उत्पाद बनाने की कम्पनियों से टाईअप करने को कहा, जिससे छत्तीसगढ़ के स्थानीय नागरिकों को रोजगार मिले और यहां के वनोपज के माध्यम से विभिन्न उत्पादों को निर्माण यहीं किया जा सके। उन्होंने कहा कि जंगलों के किनारे बसे शहरोें में वनोपजों पर आधारित उद्योगों लगाएं जाने के प्रयास किए जाने चाहिए और इसके लिए सहकारी समितियों के द्वारा भी प्रसंस्करण यूनिट लगाएं जाने पर जोेर दिया जाना चाहिए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ में हर्रा, बेहड़ा, आंवला, तिखुर, हल्दी जैसे वनों उत्पादों का बड़ी संख्या में नैसर्गिक एवं प्राकृतिक वातावरण में जैविक रूप से उत्पादन होता है। आज जैविक उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ी है और देश के राजधानी दिल्ली सहित अन्य स्थानों में छत्तीसगढ़ में उपलब्ध इन उत्पादों को प्रचारित एवं प्रसारित कर विक्रय के लिए इनकी मार्केटिंग करने की जरूरत है।
मुख्यमंत्री ने बैठक में यह भी पूछा कि छत्तीसगढ़ में बांस के जुड़े कौन-कौन से उद्योग हो सकते हैं, कहां-कहां लगाये जा सकते हैं, कहां-कहां व्यापक इसकी उपलब्धता है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में बारनावापारा आदि के जंगलों में बड़ी संख्या में बांस का उत्पादन होता है, लेकिन उनका समुचित दोहन नहीं हो पा रहा है। उन्होंने कहा छत्तीसगढ़ में फर्नीचर, अलमारी निर्माण जैसे कार्यो में स्टील का बहुतायत से उपयोग होता है। बांस और इमारती लकडि़यों का उपयोग इसके लिए बेहतर रूप से किया जा सकता है। उन्होंने उपलब्ध बांस की उपयोगिता बढ़ाने और इसके आधार पर उद्योग लगाये जाने की संभावना पर आधारित मास्टर प्लान बनाने और वन विभाग को रिपोर्ट देने को कहा। यह रिपोर्ट 15 दिनों में दी जाएगी। मुख्यमंत्री ने वनों के विकास, संरक्षण एवं वन उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए ऐसी कार्य योजना बनाने को कहा जो बेहतर परिणाम दे सके।
मुख्यमंत्री ने अधिकारियों से पूछा कि नदी किनारे किए जाने वाले पौध रोपण के लिए कौन-कौन से पौधे उपयुक्त होंगे। अधिकारियों ने बताया कि इसके लिए अर्जुन, कहवा, जामुन, कटहल, आम, अमरूद आदि अच्छे पौधे हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि शहरांे के नदी के करीब किए जाने वाले पौध रोपण के कार्य को ऐसे करें जिससे बाद में ये क्षेत्र खुबसूरत और रमणीक बनें साथ ही यहां फलदार पौधे भी लगाएं जिससे गांव के लोग उसकी सुरक्षा करें और ग्राम पंचायत तथा समितियों की आमदनी बढ़े। साथ ही लोगों को रोजगार मिले।
मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ में न केवल बड़ी संख्या में वन औषधियां प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होती है, बल्कि स्थानीय लोगों एवं वैद्यों को इसमें उपलब्ध गुणों का परम्परागत ज्ञान एवं जानकारी उपलब्ध है। यह जरूरी है कि उनके ज्ञान पर आधारित वनोषधियों के गुणों की वैज्ञानिक जांच एवं परीक्षण कराया जाए, जिससे हमारे देश का समृद्ध परम्परागत ज्ञान मानव समाज के लिए उपयोगी साबित हो सके।
मुख्यमंत्री ने कहा कि वन विभाग द्वारा किए जाने वाले वृक्षारोपण के लिए जरूरी है कि वे लगाए गए पौधों की कम से कम तीन वर्षों तक सुरक्षा करें। इसके लिए क्षेत्र की फेंसिंग कराएं और ट्यूबवेल लगाकर तथा सोलर ऊर्जा एवं ड्रिप एरिगेशन के माध्यम से कम से कम 80 से 90 प्रतिशत पौधों को बचाए।