भोपाल गैस: इतिहास की भयंकर त्रासदी, 20 खौफनाक सच

भोपाल गैस: इतिहास की भयंकर त्रासदी, 20 खौफनाक सच

भोपाल में मानव इतिहास की एक सबसे भयंकर औद्योगिक रिसाव की घटना हुई। जहरीली गैस के इस खौफनाक रिसाव में हजारों जानें चली गईं। इस तबाही का अंत यहीं नहीं हुआ बल्कि आज तक इसका विनाशक असर पड़ रहा है। भोपाल गैस त्रासदी की इस घटना का नाम सुनते ही आज भी लोग सहम जाते हैं। आइए आज इस दुखद घटना से जुड़ीं सारी बातें जानते हैं... 
 

1. यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन ने 1969 में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) के नाम से भारत में एक कीटनाशक फैक्ट्री खोली थी। इसके 10 सालों बाद 1979 में भोपाल में एक प्रॉडक्शन प्लांट लगाया। 

2. इस प्लांट में एक कीटनाशक तैयार किया जाता था जिसका नाम सेविन था। सेविन असल में कारबेरिल नाम के केमिकल का ब्रैंड नाम था। 

3. इस घटना के लिए यूसीआईएल द्वारा उठाए गए शुरुआती कदम भी कम जिम्मेदार नहीं थे। उस समय जब अन्य कंपनियां कारबेरिल के उत्पादन के लिए कुछ और इस्तेमाल करती थीं जबकि यूसीआईएल ने मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) का इस्तेमाल किया। एमआईसी एक जहरीली गैस थी। चूंकि एमआईसी के इस्तेमाल से उत्पादन खर्च काफी कम पड़ता था, इसलिए यूसीआईएल ने एमआईसी को अपनाया। 


4. यूआईसीएल द्वारा कारबेरिल के उत्पादन की प्रक्रिया कुछ इस तरह थी... 
 
5. भोपाल गैस दुर्घटना से पहले भी एक घटना हुई थी। 1981 में फॉसजीन गैस रिसाव हो गया था जिसमें एक वर्कर की मौत हो गई थी। 

6. जनवरी 1982 में एक बार फिर फॉसजीन गैस का रिसाव हुआ जिसमें 24 वर्कर्स की हालत खराब हुई थी। उनको अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 

7. फरवरी 1982 में एक बार फिर रिसाव हुआ। लेकिन इस बार एमआईसी का रिसाव हुआ था। उस घटना में 18 वर्कर्स प्रभावित हुए थे। उन वर्कर्स का क्या हुआ, अब तक पता नहीं चल पाया। 

8. अगस्त 1982 में एक केमिकल इंजिनियर लिक्विड एमआईसी के संपर्क में आने के कारण 30 फीसदी जल गया था। उसी साल अक्टूबर में एक बार फिर एमआईसी का रिसाव हुआ। उस रिसाव को रोकने के लिए एक व्यक्ति बुरी तरह जल गया। 

9. उसके बाद साल 1983 और 1984 के दौरान कई बार फॉसजीन, क्लोरीन, मोनोमेथलमीन, कार्बन टेट्राक्लोराइड और एमआईसी का रिसाव हुआ। 


10. इन रिसाव का मुख्य कारण दोषपूर्ण सिस्टम का होना था। दरअसल 1980 के शुरुआती सालों में कीटनाशक की मांग कम हो गई थी। इससे कंपनी ने सिस्टम के रखरखाव पर सही से ध्यान नहीं दिया। कंपनी ने एमआईसी का उत्पादन भी नहीं रोका और अप्रयुक्त एमआईसी का ढेर लगता गया। 

11.राजकुमार केसवानी नाम के पत्रकार ने 1982 से 1984 के बीच इस पर चार आर्टिकल लिखे। हर आर्टिकल में यूसीआईएल प्लांट के खतरे से चेताया। 
12. नवंबर 1984 में प्लांट काफी घटिया स्थिति में था। प्लांट के ऊपर एक खास टैंक था। टैंक का नाम E610 था जिसमें एमआईसी 42 टन थे जबकि सुरक्षा की दृष्टि से एमआईसी का भंडार 40 टन से ज्यादा नहीं होना चाहिए था। टैंक की सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं किया गया था और वह सुरक्षा के मानकों पर खड़ा नहीं उतरता था। 

13. 2-3 दिसंबर, 1984 की खौफनाक रात। एक साइड पाइप से टैंक E610 में पानी घुस गया। पानी घुसने के कारण टैंक के अंदर जोरदार रिएक्शन होने लगा जो धीरे-धीरे काबू से बाहर हो गया। 

14. स्थिति को भयावह बनाने के लिए पाइपलाइन भी जिम्मेदार थी जिसमें जंग लग गई थी। जंग लगे आइरन के अंदर पहुंचने से टैंक का तापमान बढ़कर 200 डिग्री सेल्सियस हो गया जबकि तापमान 4 से 5 डिग्री के बीच रहना चाहिए था। इससे टैंक के अंदर दबाव बढ़ता गया। 


15. इससे टैंक पर इमर्जेंसी प्रेशर पड़ा और 45-60 मिनट के अंदर 40 मीट्रिक टन एमआईसी का रिसाव हो गया। 

16. टैंक से भारी मात्रा में जहरीली गैस बादल की तरह पूरे इलाके में फैल गई। गैस के उस बादल में नाइट्रोजन के ऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, मोनोमेथलमीन, हाइड्रोजन क्लोराइड, कार्बन मोनोक्साइड, हाइड्रोजन सायनाइड और फॉसजीन गैस थी। जहरीले बादल के चपेट में भोपाल का पूरा दक्षिण पूर्वी इलाका आ गया। 

17. गैस के संपर्क में आने पर आसपास में रहने वाले लोगों को घुटन, आंखों में जलनी, उल्टी, पेट फूलने, सांस लेने में दिक्कत जैसी समस्या होने लगी। 

18. कम लंबाई वाले आदमी और बच्चे इससे ज्यादा प्रभाति हुए। लोगों ने भागकर जान बचानी चाहिए लेकिन तब भी गैस की बड़ी मात्रा उनके शरीर में प्रवेश कर गई। 

19. अगले दिन हजारों लोगों की मौत हो चुकी थी। लोगों का सामूहिक रूप से दफनाया गया और अंतिम संस्कार किया गया। कुछ ही दिन के अंदर 2,000 के करीब जानवरों के शव को विसर्जित करना पड़ा। आसपास के इलाके के पेड़ बंजर हो गए। अस्पतालों और अस्थायी औषधालयों में मरीजों की भीड़ लग गई। एक समय में करीब 17,000 लोगों को अस्पतालों में भर्ती कराया गया। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक तुरंत 2,259 लोगों की मौत हो गई थी। मध्य प्रदेश सरकार ने गैस रिसाव से होने वाली मौतों की संख्या 3,787 बताई थी। 2006 में सरकार ने कोर्ट में एक हलफनामा दिया। उसमें उल्लेख किया कि गैस रिसाव के कारण कुल 5,58,125 लोग जख्मी हुए।