सुप्रीम कोर्ट ने दी इजाजत, अब मध्यप्रदेश में दिखाई देगा अफ्रीकी चीता

साल 1948 में सरगुजा के जंगल में आखिरी बार दिखा था चीता
केंद्र सरकार इस प्रजाति की पुनस्र्थापना की कोशिशों में लगी है
नई दिल्ली/भोपाल। अब मप्र के नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य में अफ्रीकी चीता कुलाचें भरता दिखाई देगा। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय अभयारण्यों के लिए अफ्रीकी चीता लाने की इजाजत दे दी है। कोर्ट ने कहा कि वह अफ्रीकी चीतों को नामीबिया से भारत लाकर मध्यप्रदेश स्थित नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य में बसाने की महत्वाकांक्षी परियोजना के खिलाफ नहीं है। कोर्ट ने कहा कि बाघ-चीते के बीच टकराव के कोई सबूत रिकार्ड में नहीं हैं।
बता दें कि देश में चीते नहीं हैं। साल 1948 में सरगुजा के जंगल में आखिरी बार चीता को देखा गया था। अब केंद्र सरकार इस प्रजाति की पुनस्र्थापना की कोशिशों में लगी है। साल 2010 में केंद्र ने मध्य प्रदेश सरकार से चीता के लिए अभयारण्य तैयार करने को कहा था। वन विभाग ने पहले चीता प्रोजेक्ट के लिए कुनो पालपुर अभयारण्य का प्रस्ताव दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा करने से रोक दिया। क्योंकि कुनो पालपुर अभयारण्य को एशियाटिक लॉयन (बब्बर शेर) के लिए तैयार किया गया है।
इसके बाद विभाग ने नौरादेही को चीता के लिए तैयार करना शुरू किया। भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून ने इस प्रोजेक्ट के लिए कुनो पालपुर और नौरादेही अभयारण्य को चुना था। दोनों ही अभयारण्यों में लंबे खुले घास के मैदान हैं। चीता को शिकार करने के लिए छोटे वन्यप्राणी और लंबे खुले मैदान वाला क्षेत्र चाहिए। उन्हें छिपने के लिए घास की जरूरत होती है। विभाग ने नौरादेही से दस गांव हटाकर यह आवश्यकता पूरी कर दी है।

तीन को सौंपी जिम्मेदारी
सुप्रीम कोर्ट ने चीतों को बसाने से पहले एक बार फिर जरूरी अध्ययन करने को कहा है। अध्ययन का जिम्मा वन्यजीव विशेषज्ञ एम के रणजीत सिंह, धनंजय मोहन और वन मंत्रालय के डीआईजी (वाइल्डलाइफ) को सौंपा गया है। कोर्ट ने चार महीने बाद फिर रिपोर्ट देने के लिए कहा है।
इनका कहना है
-चीता को फिर से बसाने की अनुमति देने में अदालत को इतना समय इसलिए लग गया कि अदालत को गलत जानकारी दी गई थी कि चीता और शेर के एक साथ नहीं रह सकते।
एम के रंजीतसिंह, वन्यजीव विशेषज्ञ
- शीर्ष अदालत के फैसले से मैं खुश हूं। सुप्रीम कोर्ट ने नामीबिया से चीता को लाने की अनुमति दे दी है। मैंने 10 साल पहले इसके लिए प्रयास शुरू किया था।
जयराम नरेश, पूर्व पर्यावरण मंत्री भारत सरकार