आयुर्वेद रसायन शास्त्र में स्वर्ण निर्माण संभव
brijesh parmar
उज्जैन। रतलाम के वैध दिनेश जोशी ने इस जानकारी को सार्वजनिक रूप से प्रचारित करते हुए आयुर्वेद सम्मेलन में आए नए विघार्थियों को चौंका दिया है कि भारत के आयुर्वेद रसायन शास्त्र में स्वर्ण निर्माण संभव है। चर्चा करते हुए वैद्य जोशी ने कहा कि इसका प्रमाण दिल्ली के बिरला मंदिर में लगा है।
नागा सम्प्रदाय के कुछ लोगों के पास स्वर्ण निर्माण की सिद्धि रहती थी
वैद्य जोशी के अनुसार सिद्ध एवं नागा सम्प्रदाय के कुछ लोगों के पास स्वर्ण निर्माण की सिद्धि रहती थी। महाकाल नगरी उज्जैन में कई बार सिंहस्थ आदि में साधु-संतों द्वारा हजारों लोगों के भोजन भंडारे इसी सिद्धी के माध्यम से किए जाते थे। यह एक मिथक है।
पारद से स्वर्ण बनाने की क्रिया का प्रदर्शन किया था
आयुर्वेद में यह संभव है, इसका प्रमाण लगभग 80 वर्ष पूर्व की एक घटना इतिहास में आज भी चर्चित है। पंजाब के आयुर्वेद चिकित्सक पं. कृष्णपाल शर्मा ने ऋषिकेश में पारद से स्वर्ण बनाने की क्रिया का प्रदर्शन किया था। घटना के मुख्य गवाह महात्मा गांधी के सचिव महादेवभाई देसाई, संत गोस्वामी गणेश दत्त और प्रसिद्ध उद्योगपति जुगलकिशोर बिड़ला थे। इनकी व अन्य लोगों की उपस्थिति में लगभग दो किलो पारद में एक तोला पिसी हुई बुटी का चूर्ण मिलाकर 50-60 मिनिट तेज अग्नि में रखा गया। अग्नि बुझने के बाद वह पारद स्वर्ण बन गया था। इसका मूल्य लगभग 75 हजार रुपये था। वह उसी समय दान करने के लिए दे दिया गया था।
बिरला हाउस दिल्ली में दूसरी प्रदर्शन 27 मई 1941 में
इसी प्रकार दूसरी प्रदर्शन 27 मई 1941 में बिरला हाउस दिल्ली में प्रदर्शित किया गया था। वैद्य कृष्णपाल शर्मा ने एक तोला पारद में सफेद व पीले रंग का चूर्ण मिलाकर एक अरिठा फल में बंद कर दिया गया। उपर से मिट्टी चड़ाकर उसे आयुर्वेद की भाषा में सम्पूट कहते हैं करके तेज अग्नि में रख दिया गया। 45 मिनिट के बाद अग्नि को ठंडा किया गया।