BJP को बड़े चेहरों से बड़ी उम्मीदें, कांग्रेस की जीत खोलेगी नए चेहरों के हीरो बनने का रास्ता

ग्वालियर
प्रदेश की 28 सीटों के लिए हुए उपचुनाव में ग्वालियर-चंबल अंचल की 16 विधानसभाओं के परिणामों पर भारतीय जनता पार्टी के तीन बड़े नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है तो शिवराज सरकार के आधा दर्जन मंत्रियों का कैरियर भी 10 नवंबर को तय हो जाएगा। वहीं कांग्रेस के खाते में जीत आने पर अंचल की राजनीति में कई नए चेहरों के स्थापित होने का रास्ता खुल जाएगा।
सियासी गणित के हिसाब से ग्वालियर-चंबल के चुनाव परिणामों को सूबे की सत्ता की चाबी माना जा रहा है। दरअसल यहां सर्वाधिक 16 सीटों पर उपचुनाव हुए हैं और काफी हद तक इनके परिणाम बीजेपी की सरकार और उसके क्षत्रपों के वजूद को तय करने वाले हैं। खास बात ये है कि बीजेपी के तीन बड़े नेता इसी अंचल से हैं। यही कारण है कि इन चुनावों को केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, कांग्रेस छोड़कर भाजपा के लिए सत्ता की बागडोर का रास्ता खोलने वाले राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष व सांसद विष्णुदत्त शर्मा की प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जा रहा है। इनके अलावा बीजेपी के प्रदेश मीडिया प्रभारी लोकेन्द्र पाराशर सहित कई पूर्व मंत्रियों की राजनीतिक पकड़ के लिहाज से भी इन चुनावों को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। जहां तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का सवाल है तो उनके नाम और काम के लिहाज से तो प्रदेश की सभी 28 सीटों के चुनाव परिणामों को देखा जाएगा।
दूसरी ओर कांग्रेस में तो पार्टी के सबसे बड़े चेहरे के रुप में प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व सीएम कमलनाथ ही एकमात्र ऐसे नेता हैं, जिनकी साख को दांव पर माना जा रहा है। वहीं सच ये भी है कि ग्वालियर-चंबल में वह कभी लोकप्रिय चेहरा या प्रभावी नेता नहीं रहे। दूसरे क्रम पर आते हैं पूर्व मंत्री डॉ गोविन्द सिंह लेकिन वह भी लहार और भिण्ड जिले की और एक-दो सीट तक ही उनका प्रभाव सीमित है। बची हुई कांग्रेस का तीसरा बड़ा चेहरा हैं अशोक सिंह, मगर अंचल की राजनीति में वह जिताऊ चेहरे के तौर पर कभी स्थापित नहीं हो पाए।
छात्र जीवन से राजनीति का ककहरा सीखने के बाद जमीनी स्तर पर राजनीति में पदार्पण करने वाले केन्द्रीय मंत्री श्री तोमर यहीं से हैं। अपने संगठन कौशल और बेहतर राजनीतिक प्रबंधन के दम पर वह दो बार बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रहने के साथ ही प्रदेश से लेकर अब केन्द्र सरकार में दूसरी बार मंत्री हैं। ग्वालियर से चंबल तक उनके प्रभाव को पार्टी में टॉप लीडरशिप तक माना जाता है।
देश के प्रमुख राजघरानों और सूबे से लेकर दिल्ली के दरबार तक खासी धमक रखने वाले सिंधिया परिवार का ग्वालियर और चंबल संभाग में खासा रसूख माना जाता है। इस लिहाज से इन चुनावों के परिणाम सांसद श्री सिंधिया की प्रतिष्ठा का सवाल माने जा रहे हैं। खास बात ये भी है कि प्रदेश में कांग्रेस सरकार गिराने और बीजेपी की सत्ता में वापसी का रास्ता खोलने में उनकी केन्द्रीय भूमिका रही है।
इनके साथ ही भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा भी इसी अंचल से आते हैं। मुरैना जहां उनकी जन्मभूमि है तो छात्र राजनीति से अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत के रुप में ग्वालियर उनकी कर्मभूमि रही है। संगठनात्मक दृष्टि से विभिन्न जिम्मेदारियों को निभाते हुए अब भाजपा के सूबा सदर बने हैं तो उनसे इस अंचल में पार्टी की धमाकेदार जीत जैसे करिश्मे की उम्मीद किया जाना स्वाभाविक है।