टीपी कांड को कमजोर करने की कवायद, रेंजर सेवानिवृत्त, नहीं दिया आरोप पत्र

टीपी कांड को कमजोर करने की कवायद, रेंजर सेवानिवृत्त, नहीं दिया आरोप पत्र

विभागीय प्रक्रियाओं में निलंबन कोई सजा नहीं वैसी स्थिति में प्रकरण कमजोर होगा

brijesh parmar उज्जैन।उज्जैन वन वृत्त क्षेत्र के आगर और शाजापुर जिले में हुए टीपी कांड को वन विभाग में कमजोर करने की कवायद अंजाम दे दी गई है। इससे मामले की जांच का प्रभावित होना तय है। आगर,शुजालपुर रेंज के संबंधित रेंजर सोमवार को सेवानिवृत्त हो गए और विभाग के जिम्मेदारों ने उन्हे आरोप पत्र न देकर सोची समझी रणनीति को अंजाम दिया है। उज्जैन वन वृत्त के शाजापुर एवं आगर जिले में फर्जी टीपी कांड को अंजाम दिया गया है।नियमों को ताक में रखकर टीपी काटी गई।इस मामले में राजस्व विभाग को भी राजस्व का जमकर चुना लगाया गया।उज्जैन के प्रमुख वन संरक्षक मामले को शुरू से ही दबाने की नियती के साथ ही मिडिया को बरगलाते रहे।मामले को आगर के एक वन रक्षक श्रीकृष्ण यादव को निलंबित कर फाईल बंद करने की तैयारी की जा चुकी थी।इससे पहले की विभाग में मंशा पूर्ण हो पाती मुख्य वन संरक्षक के ही एक पत्र से मामला सुर्खियों में आ गया। इसके बाद भी आगर और शुजालपुर रेंज में अंजाम दिए गए टीपी घोटाले को दबाने के प्रयास जारी रहे। दोनों रेंज के जिम्मेदार रेंजर अविनाश धारीवाल को बचाने के लिए एडी चोंटी का जोर और प्रपंच विभागीय अधिकारी लगाते रहे।इसके बाद येन केन प्रकारेण मामले को ठंड़ा करने के लिए रेंजर को हाल ही में सेवानिवृत्ति के चार दिन पूर्व मुख्य वन संरक्षक अजय यादव ने निलंबित किया था।जानकारों का कहना है कि निलंबन कोई सजा नहीं है। सेवानिवृत्ति के साथ ही मुख्य वन संरक्षक की कार्रवाई टांय टांय फिस की स्थिति में है। मामले में रेंजर को सेवानिवृत्ति से पूर्व आरोप पत्र दिया जाना था जिससे की बाद में भी उन्हे घेरा जा सकता था।रेंजर को आरोप पत्र न दिए जाने से मुख्य वन संरक्षक की कार्यप्रणाली शंका से परे नहीं देखी जा रही है।मामले में यह बात भी विभागीय रूप से चर्चाओं में है कि घुटना पेट की तरफ ही झुकने की कहावत को चरितार्थ कर रहा है।टीपी कांड में जिम्मेदार रेंजर के सेवानिवृत्त हो जाने पर अब उन्हे आरोप पत्र देना और भी कठिन हो जाएगा।विभाग में ही मुख्य वन संरक्षक की कार्यप्रणाली चर्चाओं में है । इस मामले को लेकर मुख्य वन संरक्षक अजय यादव से उनके विभागीय मोबाईल नंबर पर संपर्क कर बातचीत का प्रयास मोबाईल बंद होने के कारण सार्थक रूप नहीं ले सका। क्या है मामला विभागीय सूत्रों के अनुसार मध्यप्रदेश शासन ने निर्णय लेते हुए कई प्रकार की लकड़ियों में 60 प्रजातियों को ट्रांजिस्ट पास से मुक्त किया था। इस मामले में पर्यावरण संस्था की ओर से न्यायालय में वाद दायर किया गया था। उच्च न्यायालय ने इसमें स्थगन जारी किया था।न्यायालय के स्थगन के पालन में वन विभाग ने टीपी पर परिवहन की प्रक्रिया अपनाई थी। इसी पूरे मामले में उज्जैन, शाजापुर और आगर जिले में घोटाला हुआ है। शाजापुर और आगर से हजारों परिवहन पास बगैर भौतिक सत्यापन एवं अन्य जांच के जारी किए गए। यहां तक की लकड़ी पर हेमर का निशान भी नहीं लगवाया गया।इन परिवहन पास में सील नहीं थी।लकड़ी की कटाई कहीं ओर से की गई और लकड़ी कहीं और से भरी गई। एक ही पास पर दो से तीन बार लकड़ी ले जायी गई। टीपी और लकड़ी का सत्यापन स्थल पर नहीं किया गया।राजस्व विभाग की कई मामलों में अनुमति नहीं ली गई। सूत्रों के अनुसार इंदौर में जांच के दौरान जो टीपी पकड़ी गई थी उसमें न तो गाड़ी नंबर था न ही स्थल का उल्लेख था और न ही वजन का।विभाग के जानकारों के अनुसार वनों की अवैध कटाई के साथ ही अवैध टीपी का यह मकड़जाल चार जिलों में फैला हुआ है। कतिपय अधिकारी भी स्वार्थ के चलते सहयोगी की भूमिका में हैं। संबंधित दिनांक को रेंजर को सेवानिवृत्त किया गया है।आरोप पत्र के लिए संबंधित सीसीएफ जिम्मेदार है वे ही बता पाएंगे की क्या स्थिति रही है। धर्मेन्द्र वर्मा अपर मुख्य वन संरक्षक (वनोपज),भोपाल