किसान संगठनों ने वार्ता की पेशकश का नहीं दिया जवाब, आंदोलन पर सरकार गंभीर, किसानों की चुप्पी से बढ़ी आशंका
नई दिल्ली। कृषि सुधार की दिशा में संसद से पारित कानून को लेकर दिल्ली पहुंचे किसानों के आंदोलन पर सरकार गंभीर है, लेकिन किसान संगठनों की चुप्पी से कई तरह की आशंकाएं बढ़ने लगी हैं। मसले को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के आवास पर केंद्रीय मंत्रियों की बैठक में सोमवार को इस पर विचार किया गया।
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि किसान संगठनों को वार्ता के लिए पहले ही आमंत्रित किया गया है, लेकिन उनकी ओर से कोई स्पष्ट जवाब नहीं आया है। तोमर ने कहा कि वे चाहें तो पूर्व निर्धारित तीन दिसंबर से पहले ही वार्ता के लिए बैठक कर सकते हैं। इस पेशकश को लेकर भी उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
भाजपा ने विपक्षी राजनीतिक दलों पर किसानों में भ्रम फैलाने का लगाया आरोप
सरकार के स्पष्ट रुख के बावजूद किसान संगठनों के मौन से कई तरह की आशंकाएं जताई जा रही है। विपक्षी दलों का किसानों के सहारे सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश है। सत्तारुढ़ भाजपा ने विपक्षी राजनीतिक दलों पर किसानों में भ्रम फैलाने का आरोप भी लगाया है। भाजपा ने किसानों को इस बात पर गुमराह न होने की सलाह दी कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर होने वाली खरीद समाप्त कर दी जाएगी। यह प्रणाली ज्यों की त्यों जारी रहेगी।
पंजाब के किसानों के आंदोलन को मिल रहे वित्तीय समर्थन को लेकर भी आशंकाएं बढ़ रही हैं। खासतौर पर विदेशों में बस गए प्रवासी भारतीयों की ओर से उनके समर्थन में किए जा रहे समर्थन से इसे और बल मिल रहा है।
केंद्रीय मंत्री प्रसाद ने कहा कि कांट्रैक्ट कानून के तहत किसानों के शोषण नही कर सकेंगे। कंपनियों के साथ होने वाले अनुबंध से किसान किसी भी समय बाहर हो सकता है। इस नये कानून से किसानों को निश्चित मूल्य पर अपनी उपज बेचने की स्वतंत्र हो जाएगा।
भाजपा नेता व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि नये कानून किसानों के लिए वरदान साबित होगा, जिससे उसके जीवन में नये अवसर पैदा होंगे। किसानों को इन कानूनों से उसकी उपज के उचित व लाभकारी मूल्य प्राप्त हो सकेंगे।