अब देश भर में नहीं हो सकेगी ऑनलाइन दवा की बिक्री, दिल्ली हाईकोर्ट ने लगाई रोक
दिल्ली
दिल्ली हाईकोर्ट ने ऑनलाइन दवा बेचने पर पूरे देश में रोक लगा दी है। कोर्ट के इस आदेश से जहां नेटमेड्स और 1 एमजी जैसी कंपनियों को झटका लगा है, वहीं लाखों खुदरा दुकानदारों को राहत मिली है।
इससे पहले मद्रास हाईकोर्ट ने ऑनलाइन दवा बेचने पर अंतरिम रोक लगाई थी। रोक लगने के बाद सबसे ज्यादा असर उन ई-कॉमर्स कंपनियों पर पड़ेगा, जो पूरे देश में ऑनलाइन दवा की बिक्री करती हैं। केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन ने याचिका दायर कर कहा था कि खराब और बिना रेगुलेशन के दवा बेचने से आम लोगों के जीवन पर काफी खतरा मंडराता है।
इसी को देखते हुए एसोसिएशन ने कोर्ट से मांग की थी कि ऑनलाइन फार्मेसी पर रोक लगा दी जाए।
इसलिए हो रहा था विरोध
कुछ कंपनियों की भारत के दवा बाजार पर भी नजर है जो 12 अरब डॉलर यानी करीब 780 अरब रुपये का है। इसे लेकर दवा विक्रेताओं में नाराजगी देखने को मिल रही है। हाल में भारत के करीब साढ़े आठ लाख दवा विक्रेताओं ने दवाओं की ऑनलाइन बिक्री के विरोध में एक दिन की हड़ताल की थी।
प्रिस्क्रिप्शन करना होता था अपलोड
अगर आप दवा ऑनलाइन खरीदना चाहते हैं तो फिर आपको प्रिस्क्रिप्शन अपलोड करना होगा, इसे मंजूरी मिलते ही आप ऑनलाइन भुगतान कीजिए, दवा आपके घर तक पहुंच जाएगी। हालांकि, दवाइयों के खुदरा विक्रेता इसकी ऑनलाइन बिक्री का विरोध कर रहे हैं। हालांकि इन लोगों की अपनी खामियां भी हैं। खुदरा विक्रेता बिना किसी प्रिस्क्रिप्शन के भी दवाइयां बेचते रहे हैं। ऐसे में, सरकार के लिए दवाओं की बिक्री के बेहतर तौर तरीके तैयार करना जरूरी हो गया है।
ऑनलाइन बिक्री से बढ़ेगी कालाबाजारी
दवा कारोबारियों का तर्क है कि ऑनलाइन व्यवस्था से दवाओं की कालाबाजारी बढ़ने के साथ उनकी गुणवत्ता पर भी असर पड़ता था। इस नई तकनीक से नशे के लिए इस्तेमाल होने वाली दवाओं का कारोबार तेजी से बढ़ रहा था। इसके अलावा ऑनलाइन दवा बिक्री में बची दवा की वापसी संभव नहीं है जिसका सीधा नुकसान मरीजों को होता है।
दवा दुकानों पर काम करने वाले करोड़ों लोग बेरोजगार होते। पूरे भारत में दवाई की आठ लाख से ज्यादा दुकानें हैं। उत्तर प्रदेश में दवा की दुकानों की संख्या 1 लाख 12 हजार है जिसमें 72 हजार थोक और 40 हजार खुदरा दुकानें हैं।