किसी भी स्थिति में निजता के अधिकार में दखल नहीं दे सकती सरकार
जबलपुर
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि किसी भी व्यक्ति का घर उसका किला या गढ़ है और उसकी सीमा में वह निसंदेह अपनी इच्छा का मालिक है। किसी भी परिस्थिति में सरकार नागरिक की निजता के अधिकार में हस्तक्षेप नहीं कर सकती, जब तक कि उसका कृत्य किसी प्रतिबंधात्मक कानून का उल्लंघन नहीं हो। हाईकोर्ट ने यह फैसला पुलिस के एडीजी राजेंद्र कुमार मिश्रा के बीमार पिता कुलामणि मिश्रा के इलाज को लेकर दिया है।
मानवाधिकार आयोग ने डीजीपी को पत्र लिखकर डॉक्टरों की जांच समिति गठित करने और कुलामणि की बीमारी की सच्चाई का पता लगाने के आदेश दिए थे। जस्टिस अतुल श्रीधरन की एकलपीठ ने आयोग के उक्त आदेश को नागरिक के निजता के अधिकार और संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त जीने का मूलभूत अधिकार का उल्लंघन करार देते हुए खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि अगर यह मान भी लिया जाए कि कुलामणि की मृत्यु हो चुकी है और परिजन शरीर को रखे हैं तो भी यह कृत्य कानूनन अवैधानिक नहीं है और इसमें सरकार हस्तक्षेप नहीं कर सकती। कोर्ट ने कहा कि भारत में व्यक्ति को उसकी इच्छा के अनुसार जीने या कोई कृत्य करने का पूरा अधिकार है, जब तक कि उसका कृत्य किसी कानून का उल्लंघन नहीं करता।
एडीजी के पिता को सांस की तकलीफ के चलते जनवरी 2019 में अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 14 फरवरी को अखबारों में समाचार प्रकाशित हुआ कि कुलामणि की मृत्यु हो चुकी है, लेकिन परिजन शव का घर पर इलाज करा रहे हैं। अखबारों की रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए आयोग ने 14 फरवरी को डीजीपी को पत्र लिखकर तीन दिन में रिपोर्ट मांगी थी। पूछा था कि क्या कुलामणि की मृत्यु प्राकृतिक है, क्या उनके शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया है और अगर नहीं तो शव को संक्रमण से बचाने कौन से वैज्ञानिक तरीके अपनाए गए हैं।
एडीजी का दावा- जीवित हैं उनके पिता : डीजीपी ने 18 फरवरी को आयोग को बताया कि कुलामणि की मृत्यु 13 जनवरी को हो गई है और बंसल अस्पताल ने मृत्यु प्रमाणपत्र जारी किया है। उन्होंने बताया कि एडीजी का दावा है कि पिता जीवित हैं और आयुर्वेदिक पद्धति से इलाज चल रहा है। इस पर कुलामणि की पत्नी शशिमणि ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। वरिष्ठ अधिवक्ता अजय मिश्रा ने कोर्ट को बताया कि कुलामणि जीवित हैं और आयुर्वेदिक पद्धति से इलाज वैद्य राधेश्याम शुक्ला द्वारा किया जा रहा है। उन्होंने दलील दी कि अगर कुलामणि की मृत्यु हो जाती तो अभी तक शव संक्रमित हो जाता और बदबू से आसपास के लोग परेशान हो जाते।
आयोग के वकील की दलील : आयोग की ओर से अधिवक्ता वीके श्रोती ने दलील दी कि कुलामणि की मृत्यु हो चुकी है और परिजन अवैधानिक रूप से शव रखे हैं। संक्रमित शव के कारण लोक स्वास्थ्य को खतरा है। कुलामणि के शव का पूरे सम्मान और सामाजिक रीति रिवाजों के साथ अंतिम संस्कार होना जरूरी है और ऐसा नहीं करना उनके मानव अधिकारों का उल्लंघन है।