जेटली ही नहीं, शाह को भी नहीं पसंद खजाने पर पहरा

जेटली ही नहीं, शाह को भी नहीं पसंद खजाने पर पहरा

 
नई दिल्ली 

भारतीय जनता पार्टी देश में पार्टी विद अ डिफरेंस है. आमतौर पर राजनीतिक दल संविधान से बंधे हैं और जैसा उनका संविधान कहता है पार्टी उसपर अमल करती है. वहीं देश में जब कोई लोकतांत्रिक पार्टी चुनाव जीतकर सत्ता में आती है तो उक्त पार्टी की सरकार देश के संविधान को अमल करती है. बहरहाल, कम से कम एक मामले में न तो पार्टी और न ही पार्टी की केन्द्र में सरकार नियमों के मुताबिक चलने के लिए तैयार है.

केन्द्र सरकार में वित्त मंत्री पर केन्द्रीय रिजर्व बैंक के साथ सामंजस्य बनाने की जिम्मेदारी है. नियमों के मुताबिक केन्द्रीय रिजर्व बैंक एक स्वायत्त संस्था है और उसे देश के खजाने की निगरानी करने के लिए यह स्वायत्तता दी गई है. इस निगरानी का दारोमदार केन्द्रीय केन्द्रीय रिजर्व बैंक के गवर्नर पर रहती है. मौजूदा सरकार के साढ़े चार साल के कार्यकाल में दो केन्द्रीय बैंक गवर्नरे अपने तीन साल के कार्यकाल के दौरान केन्द्र सरकार के साथ खींचतान का शिकार हुए.

जहां पूरी दुनिया में ख्याति पाने के बावजूद केन्द्र सरकार ने पहले गवर्नर रघुराम राजन के कार्यकाल को बढ़ाने में रुचि नहीं दिखाई. वहीं, केन्द्र सरकार के कार्यकाल में दूसरे गवर्नर उर्जित पटेल अपना तीन साल का कार्यकाल भी पूरा किए बगैर चले गए. दोनों गवर्नर और जेटली के नेतृत्व वाला वित्त मंत्रालय नियम के मुताबिक समन्वय नहीं बैठा सका.
 

ऐसा ही मामला देश की इस पार्टी के अंदर भी साफ दिखाई दे रहा है. पार्टी का संविधान पृष्ठ 13 पर कहता है कि पार्टी अध्यक्ष राष्ट्रीय कार्यकारिणी के 120 सदस्यों में से अधिक से अधिक 13 उपाध्यक्ष, 9 महामंत्री, एक महामंत्री(संगठन), अधिक से अधिक 15 मंत्री तथा एक कोषाध्यक्ष को मनोनीत करेगा. मनोनीत किए जाने वाले इन पदाधिकारियों पर पार्टी के कामकाज की अलग-अलग जिम्मेदारी होगी. संविधान में किए गए इस प्रावधान के विपरीत इस पार्टी में बीते 30 महीनों से कोषाध्यक्ष का पद खाली पड़ा है. लेकिन पार्टी अध्यक्ष अमित शाह इस पद पर राष्ट्रीय कार्यकारिणी के किसी सदस्य को मनोनीत नहीं कर पा रहे हैं.

दरअसल भारतीय जनता पार्टी के कोषाध्यक्ष का पद 16 जनवरी 2016 को तब रिक्त हो गया जब तत्कालीन कोषाध्यक्ष पियूष गोयल को केन्द्रीय कैबिनेट में जगह दे दी गई. गोयल को स्वतंत्र प्रभार के साथ खनन मंत्रालय दिया गया. इसके बाद सितंबर 2017 में रेल मंत्रालय से सुरेश प्रभु की छुट्टी के बाद गोयल को रेलवे का प्रभार दिया गया. इसके बाद एक बार फिर हाल ही में वित्त मंत्री अरुण जेटली की खराब तबीयत के चलते वित्त मंत्रालय का भी प्रभार दिया गया.
 

वहीं पीयूष गोयल के केन्द्रीय कैबिनेट में आने और प्रभारों में बदलाव के बीच पार्टी में एक व्यक्ति एक पद की नीति के चलते पार्टी बिना कोषाध्यक्ष के रही. पार्टी में एक कोषाध्यक्ष का काम पार्टी के फंड को संभालने का है. इस काम में पार्टी के दफ्तरों का खर्च, चुनाव प्रचार का खर्च, अध्यक्ष एंव अन्य पदाधिकारियों के पार्टी के काम से यात्रा का खर्च जैसे महत्वपूर्ण काम शामिल हैं. जाहिर है, सवाल खड़ा होता है कि जब जुलाई 2016 से पार्टी के पास कोई कोषाध्यक्ष नहीं है तो यह काम बीते 30 महीनों के दौरान कौन कर रहा है. खासबात है कि चुनावों के खर्च का ब्यौरा चुनाव आयोग को देने का काम भी पार्टी के कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी है. लिहाजा, पीयूष गोयल के बाद खाली पड़े इस पद की जिम्मेदारी बिना कोषाध्यक्ष के कैसे निभाई जा रही है. क्या पार्टी अध्यक्ष ने इस काम के लिए राष्ट्रीय कार्यकारिणी के किसी सदस्य को इस काम में लगाया है? यदि ऐसा है तो क्यों इस सदस्य को कोषाध्यक्ष मनोनीत नहीं किया गया है?

पार्टी में उच्च स्तरीय सूत्रों की मानें तो शीर्ष नेतृत्व में पार्टी के नए कोषाध्यक्ष को लेकर मतभेद की स्थिति है. ऐसी स्थिति में जहां पार्टी अध्यक्ष जिसे इस जिम्मेदारी के लिए मनोनीत करना चाहते हैं वह सदस्य राष्ट्रीय कार्यकारिणी को मंजूर नहीं है. वहीं राष्ट्रीय कार्यकारिणी के प्रभावी सदस्यों द्वारा सुझाए गए सदस्य पर पार्टी अध्यक्ष तैयार नहीं है. इस मतभेद के चलते पार्टी बीते 30 महीनों से बिना कोषाध्यक्ष के काम कर रही है. और सवाल यही है कि आखिर कैसे यह पार्टी बिना कोषाध्यक्ष के काम कर रही है?