दूर होंगे इनकम टैक्स से जुड़े कन्फ्यूजन
नई दिल्ली
वित्त वर्ष के समाप्त होने से पहले नौकरीपेशा लोगों से कंपनियां इन्वेस्टमेंट प्रूफ मांग रही हैं. वहीं लोगों में इसको लेकर कई तरह के कन्फ्यूजन हैं. अधिकतर लोगों को यह नहीं समझ में नहीं आ रहा कि वह इन्वेस्टमेंट प्रूफ में क्या-क्या दे सकता है. तो वहीं बहुत ऐसे भी लोग हैं जो स्टैंडर्ड डिडक्शन को लेकर कन्फ्यूज हैं. आज हम इस रिपोर्ट में आपकी इस कन्फ्यूज को दूर करने वाले हैं.
इन्वेस्टमेंट प्रूफ क्यों मांग रही कंपनियां ?
दरअसल, इन्वेस्टमेंट प्रूफ के जरिए कंपनियां आपके द्वारा टैक्स बचाने के लिए किए गए इंवेस्टमेंट की जानकारी लेती हैं. कंपनी ऐसा आपको टैक्स ज्यादा या कम देने के झंझट से बचाने के लिए करती हैं. ऐसे में एक निश्चित तारीख तक आपको इन्वेस्टमेंट प्रूफ की कॉपी अपनी कंपनी को देनी होगी. अगर आपने ऐसा नहीं किया तो आपकी सैलरी कट सकती है.
इन्वेस्टमेंट प्रूफ में क्या-क्या दे सकते हैं ?
इन्वेस्टमेंट प्रूफ के तौर पर अपने लाइफ या हेल्थ पॉलिसी या फिर टैक्स सेविंग निवेश की रसीद देती पड़ेगी. वहीं किराए के मकान में रहने वाले लोगों को किराए के घर की रसीद जमा करानी होती है. इसके अलावा होम लोन ले रखी है तो इससे जुड़े दस्तावेज भी कंपनी को देने होंगे.
क्या ट्यूशन फीस भी दे सकते हैं ?
इन्वेस्टमेंट प्रूफ के तौर पर आप बच्चों की ट्यूशन फीस भी दे सकते हैं. लेकिन इसकी कुछ शर्तें भी हैं. पहली शर्त के मुताबिक सिर्फ भारत सरकार के साथ रजिस्टर्ड स्कूल, कॉलेज या अन्य शिक्षा संस्थान में दाखिले के समय या वित्त वर्ष में किसी भी समय भरी गई फीस टैक्स लाभ के लिए मान्य हैं. इसके अलावा यह छूट सिर्फ दो बच्चों की स्कूल फीस तक ही सीमित है. अगर माता-पिता दोनों ही जॉब में हैं, तो वे अलग-अलग तरीके से इस छूट का फायदा उठा सकते हैं. कई बार अभिभावकों को ट्यूशन फीस के अलावा भी कई प्रकार के शुल्क जमा कराने होते हैं. बता दें कि आयकर कानून, 1961 के सेक्शन 80C के तहत ट्यूशन फीस पर टैक्स में छूट मिलती है.
स्टैंडर्ड डिडक्शन क्या होता है?
स्टैंडर्ड डिडक्शन आपकी सालाना कमाई का वो हिस्सा है, जिस पर आपको कोई टैक्स नहीं देना होता है. इस छूट का फायदा उठाने के लिए आपसे आयकर विभाग किसी भी तरह का डॉक्युमेंट भी नहीं मांगता है. आसान भाषा में समझें तो आपको स्टैंडर्ड डिडक्शन के तहत मिलने वाली 40 हजार रुपये तक की छूट का कोई इन्वेस्टमेंट प्रूफ देने की जरूरत नहीं होगी.
कैसे तय होगा स्टैंडर्ड डिडक्शन ?
स्टैंडर्ड डिडक्शन वो एक एकमुश्त रकम है जिसे सैलरी से हुई आपकी कुल कमाई में से घटा दिया जाता है और उसके बाद टैक्सेबल इनकम की कैलकुलेशन किया जाता है. उदाहरण के लिए आपकी सालाना कमाई 5 लाख रुपये है तो आप इस रकम में से 40,000 रुपये तक (5 लाख -40 हजार = 4,60,000 ) कम कर लें. यानि आपकी 4 लाख 60 हजार रुपये की सालान इनकम टैक्सेबल है. आपको कितना स्टैंडर्ड डिडक्शन मिलेगा, ये इस पर निर्भर करेगा कि आप टैक्स स्लैब के किस दायरे में आते हैं.
इस कैल्कुलेशन से समझें
सालाना इनकम - 5 लाख रुपये
स्टैंडर्ड डिडक्शन - 40,000 रुपये
टैक्सेबल इनकम - 4,60,000 रुपये (5 लाख -40 हजार)
टैक्स छूट - 2,50,000 रुपये तक
4,60,000-2,50,000 = 2 लाख 10 हजार रुपये
टैक्स स्लैब- 5 फीसदी
स्टैंडर्ड डिडक्शन का किसको कितना फायदा ?
आम बजट 2018 में 40 हजार रुपये के स्टैंडर्ड डिडक्शन को लागू किया था. स्टैंडर्ड डिडक्शन लागू होने से पहले मेडिकल अलाउंस के तौर पर 15 हजार और ट्रांसपोर्ट अलाउंस के नाते 19200 रुपये मिलते थे. ये दोनों मिलाकर 34,200 रुपये होते थे. अब इसे स्टैंडर्ड डिडक्शन की 40 हजार रुपये से कम कर दें तो आपको सिर्फ 5800 रुपये का फायदा मिलता है. आसान भाषा में समझें तो आप अगर 5 फीसदी के टैक्स स्लैब में आते हैं तो आपका टैक्स सिर्फ 290 रुपये बचता है. वहीं अगर 10 फीसदी टैक्स भर रहे हैं तो आपके 1160 रुपये बचेंगे जबकि 30 फीसदी का टैक्स दे रहे हैं तो 1740 रुपये बचा सकेंगे. बता दें कि इसका फायदा नौकरीपेशा और पेंशनभोगियों को सबसे ज्यादा मिलता है.