पराली के धुएं से हो रही खांसी का खर्च 21 हजार करोड़ रुपये सालाना

पराली के धुएं से हो रही खांसी का खर्च 21 हजार करोड़ रुपये सालाना

नई दिल्ली
अमेरिका के इंटरनैशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टिट्यूट में हुई स्टडी में दावा किया गया है कि पराली जलाने से होने वाले धुएं और प्रदूषण की वजह से भारत को हर साल 30 बिलियन यूएस डॉलर यानी 21 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। साथ ही पराली जलाने की वजह से बच्चों में फेफड़ों से संबंधित बीमारियों का खतरा भी कई गुना बढ़ गया है। इस स्टडी के नतीजे सोमवार 4 मार्च को जारी किए गए।


5 साल से छोटे बच्चों में ARI का खतरा ज्यादा
स्टडी में दावा किया गया है कि पराली जलाने और इससे होने वाले प्रदूषण प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले लोग खास तौर पर 5 साल से छोटे बच्चों में इसकी वजह से एक्यूट रेस्पिरेट्री इंफेक्शन (ARI) का खतरा कहीं ज्यादा है। यह स्टडी इसलिए भी खास है क्योंकि उत्तर भारत में पराली जलाने से स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान को लेकर पहली बार यह आकलन सामने आया है।

ढाई लाख लोगों के स्वास्थ्य संबंधी डेटा के आधार पर हुई स्टडी
अनुसंधानकर्ताओं ने दावा किया है कि पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण की वजह से करीब 21 हजार करोड़ रुपये के नुकसान की चपेट में पंजाब, हरियाणा और दिल्ली हैं। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले हर एज ग्रुप के करीब 2 लाख 50 हजार लोगों के स्वास्थ्य संबंधित डेटा और नासा की सैटलाइट से मिली पराली जलाने की घटनाओं के आधार पर यह स्टडी की गई है।

पराली जलना शुरू होते ही बढ़ने लगते हैं मरीज
इस स्टडी में कहा गया है कि जैसे ही हरियाणा और पंजाब में पराली जलना शुरू होती है, अस्पताल में ARI के लक्षण वाले मरीज बढ़ने लगते हैं। इस रिपोर्ट में पटाखों, गाड़ियों आदि से होने वाले प्रदूषण का आकलन भी किया गया है। स्टडी में दावा किया गया है कि सर्दियों में पराली जलाने की वजह से कुछ दिनों तक दिल्ली में Pm यानी पर्टिक्यूलेट मैटर का स्तर WHO के मानकों से 20 गुना तक ज्यादा बढ़ जाता है। हालांकि दिल्ली की तुलना में ARI जैसी बीमारियों का खतरा पराली जलने वाली जगहों पर रहने वाले लोगों में 3 गुना अधिक होता है।

पराली जलाने से रोकने के लिए निकालना होगा हल
क्रॉप बर्निंग यानी पराली जलाने की घटनाओं का हल तो है लेकिन इसके लिए काफी निवेश करने की जरूरत है। इस स्टडी में यह भी कहा गया है कि अगर पराली जलाना बंद कर दिया जाए तो इससे न सिर्फ पैसों की बचत होगी बल्कि उत्तर भारत में समय से पहले हो रही मौत और विकलांगता के आंकड़ों को भी कम किया जा सकेगा।