राष्ट्रपति से मांग, तत्काल बंद की जाए सांसद-विधायकों की पेंशन  

राष्ट्रपति से मांग, तत्काल बंद की जाए सांसद-विधायकों की पेंशन  

भारत के संविधान में जनप्रतिनिधियों को पेंशन देने का कोई प्रावधान नहीं

भोपाल। भारत के संविधान में जनप्रतिनिधियों को पेंशन देने का कोई प्रावधान नहीं है। फिर भी केंद्र सरकार और राज्य सरकार विधायक और सांसदों को संविधान का उल्लंघन करके पेंशन दे रही है। सांसद-विधायक शासकीय सेवक नहीं है। सांसद-विधायक सेवानिवृत्त भी नहीं होते हैं। वह जनसेवक हैं और जनसेवक को पेंशन की पात्रता नहीं होती है। सरकार 60 वर्ष की उम्र तक शासकीय सेवा करने वाले कर्मचारी को पेंशन न देने के लिए पीएफआरडीए एक्ट 2013 बनाए हुए हैं। जबकि भारत के संविधान में स्पष्ट प्रावधान है कि शासकीय सेवक को पेंशन की पात्रता है।

मध्यप्रदेश कर्मचारी मंच ने राष्ट्रपति द्रोपती मुर्मू को पत्र लिखकर मांग की है कि संविधान में दिए गए प्रावधानों का पालन करते हुए सांसदों और विधायकों की पेंशन पर तत्काल रोक लगाई जाए।मध्यप्रदेश कर्मचारी मंच के प्रांत अध्यक्ष अशोक पांडे ने बताया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 195 में स्पष्ट उल्लेख है कि सांसद, विधायक जनप्रतिनिधि हैं इन्हें पेंशन देने का प्रावधान नहीं किया जा सकता है। फिर भी केंद्र सरकार और राज्य सरकार संविधान का उल्लंघन करके सांसदों विधायकों को मुफ्त की रेवड़ी की तरह पेंशन भुगतान कर रही है। यहां तक की सांसद, विधायक जितने बार चुनाव जीते हैं उतने बार की उन्हें पेंशन देने का नियम जनप्रतिनिधियों ने स्वयं बना लिया है। राज्य और केंद्र सरकार के नियम के तहत एक व्यक्ति को एक ही पेंशन की पात्रता होती है। किसी निशक्त व्यक्ति को भी एक साथ दो पेंशन का लाभ नहीं मिलता। फिर सांसद, विधायकों को एक ही जीवन में दो पेंशन का लाभ कैसे मिल सकता है। शासकीय सेवक के लिए भी सेवा वृद्धि या संविदा नियुक्ति के बाद  पेंशन के आधार पर वेतन निर्धारण किया जाता है। सांसदों, विधायकों को पेंशन देने के मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय ने भी संज्ञान लिया है। उच्च न्यायालय ने संविधान की अनुच्छेद 195 का पालन कराने का लेख शासकीय महाधिवक्ता को किया है।

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