दिल्ली का असली बॉस कौन? SC में उपराज्यपाल पर आज आएगा फैसला

 
नई दिल्ली 

दिल्ली का असली बॉस कौन? इस बात का फैसला आज यानी गुरुवार को हो सकता है. अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार उपराज्यपाल के पास रहेगा या दिल्ली सरकार के पास, इस पर सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को फैसला सुनाएगा. देश की शीर्ष अदालत दिल्ली में अफसरों पर नियंत्रण और भ्रष्टाचार निरोधक शाखा के अधिकार क्षेत्र जैसे मसलों पर अपना फैसला सुनाने वाली है.

जस्टिस एके सीकरी और अशोक भूषण की बेंच इस मामले में आज सुबह 10.30 बजे अपना फैसला सुनाएगी. सभी पक्षों को सुनने के बाद इस पीठ ने 3 महीने पहले यानी एक नवंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. पिछले हफ्ते दिल्ली सरकार ने पीठ के समक्ष इस मसले को उठाते हुए मामले में जल्द फैसला सुनाने का अनुरोध किया था.

दिल्ली सरकार की ओर से पीठ को अनुरोध किया गया कि इस संबंध में फैसला जल्द सुनाया जाए क्योंकि प्रशासन चलाने में कई दिक्कतें आ रही है. पिछले साल संविधान पीठ ने अपना फैसला देते हुए कहा था कि दिल्ली में पुलिस, कानून व्यवस्था और भूमि को छोड़कर उपराज्यपाल दिल्ली सरकार के किसी अन्य कामकाज में दखल नहीं देंगे.

सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले में कहा गया था कि उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह पर काम करना होगा और अगर किसी मुद्दे पर सरकार और उपराज्यपाल के बीच विवाद हो जाए तो उपराज्यपाल उसे राष्ट्रपति के समक्ष रेफर करेंगे. हालांकि इस फैसले के बाद दिल्ली सरकार ने कहा था कि संविधान पीठ के फैसले के बाद भी कई मसलों पर गतिरोध बरकरार है.

तब फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार के साथ मिलकर काम करना चाहिए. दिल्ली विधानसभा पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर के अलावा किसी भी विषय पर कानून बना सकती है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले को भी पूरी तरह से उलट दिया, जिसमें हाई कोर्ट ने उपराज्यपाल को दिल्ली का असली बॉस बताया था.

हाई कोर्ट ने उपराज्यपाल को बताया था बॉस

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में उपराज्यपाल को ही दिल्ली का बॉस बताया था. दिल्ली हाई कोर्ट ने 4 अगस्त 2016 को इस मसले पर सुनवाई करते हुए कहा था कि उपराज्यपाल ही दिल्ली के प्रशासनिक प्रमुख हैं और दिल्ली सरकार उपराज्यपाल की मर्जी के बिना कानून नहीं बना सकती.

हाई कोर्ट के फैसले के अनुसार, उपराज्यपाल दिल्ली सरकार के फैसले को मानने के लिए बाध्य नहीं हैं और वह अपने विवेक के आधार पर फैसला ले सकते हैं, साथ ही दिल्ली सरकार को किसी भी तरह का नोटिफिकेशन जारी करने से पहले एलजी की अनुमति लेनी ही होगी.

दिल्ली हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ ही राज्य की आम आदमी पार्टी की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. 5 जजों की संविधान पीठ ने 6 दिसंबर, 2017 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.