‘नोटा भाई’ ने इस बार भी रुलाया लेकिन पहले से कमजोर हुई पकड़!

‘नोटा भाई’ ने इस बार भी रुलाया लेकिन पहले से कमजोर हुई पकड़!

रायपुर 
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में ‘नोटा’ (None of the above) ने इस बार भी प्रत्याशियों को रुलाया. कई जगहों पर इसने सपा, बसपा, सीपीआई, सीपीएम और आप जैसी पार्टियों को पछाड़ दिया. कई विधानसभाओं में उसे प्रत्याशियों की जीत-हार के अंतर से अधिक वोट मिले. राजस्थान के कौशलगढ़ क्षेत्र में तो इसको 11002 वोट मिले, जो अपने आप में रिकॉर्ड है. हालांकि, 2013 के मुकाबले तीनों राज्यों में ‘नोटा’ पर लोगों का भरोसा कम होता नजर आ रहा है. 

चुनाव आयोग के मुताबिक 2013 के चुनाव में इन तीनों राज्यों में 16,34,152 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया था, जबकि इस बार इसे 12,92,820 वोट ही मिले. ये अलग बात है कि ज्यादातर जगहों पर नोटा को क्षेत्रीय दलों से भी अधिक वोट हासिल हुए हैं और इसने कई प्रत्याशियों का खेल बिगाड़ दिया.

एससी/एसटी एक्ट को लेकर केंद्र सरकार के स्टैंड पर एमपी, राजस्थान में सवर्ण समाज ने नाराजगी दिखाई थी. मंत्रियों और सांसदों का घेराव शुरू कर दिया था. उन्होंने नोटा का इस्तेमाल करने के लिए अभियान चलाया था. इसके बावजूद नोटा की पकड़ पिछले चुनाव के मुकाबले कमजोर हो गई. सियासी जानकार इसकी वजह जानने में जुटे हुए हैं.  

राजनीतिक विश्लेषक आलोक भदौरिया का कहना है कि इन राज्यों के पिछले चुनाव में नोटा नया-नया था. नेताओं के खिलाफ लोगों में काफी गुस्सा था. इसलिए लोगों ने उसका खूब इस्तेमाल किया. लेकिन अब ऐसा नहीं है. अब ज्यादातर मतदाता स्पष्ट सोच लेकर चल रहा है. नोटा पर वोट करने वाला मतदाता या तो सत्ता के खिलाफ गुस्से में होता है या फिर कन्फ्यूज. लोग राजनीति में बदलाव के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे थे लेकिन देखा ये गया है कि इससे कुछ भी बदला नहीं. ऐसे में कुछ लोगों ने किसी न किसी को अपना वोट देना सार्थक समझा. 

साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद नोटा का बटन ईवीएम पर आखिरी विकल्प के रूप में जोड़ा गया था. गुजरात विधानसभा के चुनाव में इसका इस्तेमाल पहली बार हुआ. मतदाता किसी भी उम्मीदवार को योग्य नहीं पाने की स्थिति में नोटा का बटन दबाता है. हालांकि नोटा को मिले वोट की संख्या सभी उम्मीदवारों को प्राप्त मतों की संख्या से अधिक हो तब भी उस उम्मीदवार को विजयी घोषित किया जाएगा जिसे चुनाव मैदान में उतरे सभी उम्मीदवारों से अधिक वोट मिले हैं.

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के लिए मंगलवार को हुई मतगणना में सभी उम्मीदवारों को खारिज करने (नोटा) के विकल्प को भी वोटरों ने क्षेत्रीय दलों से ज्यादा तरजीह दी है. चुनाव आयोग के मुताबिक, छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक 2 प्रतिशत वोट नोटा के खाते में गए. तीन राज्यों में आप और सपा सहित अन्य क्षेत्रीय दलों से अधिक भरोसा वोटरों ने नोटा पर दिखाया. मध्य प्रदेश में यह 6 दलों से ज्यादा मजबूत रहा. राजस्थान में इसे एसपी, एनसीपी, आप और सीपीएम सहित आठ पार्टियों से अधिक वोट मिले. जबकि छत्तीसगढ़ में भी इसने आप, सीपीआई और सपा सहित छह दलों से अधिक वोट हासिल हुए.