विदेशी मीडिया में विस चुनाव नतीजों पर तंज, मोदी और भाजपा का उड़ाया मजाक
न्यूयॉर्क
भारत में 5 राज्यों राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम, तेलांगना और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों के नतीजों की विदेशों में भी खूब चर्चा हो रही है। अमेरिका, ब्रिटेन के अलावा चीन और पाकिस्तान के अखबारों ने इसे चुनावों का सेमीफाइनल बताया है जिसमें केंद्र शासित पार्टी भाजपा को शर्मनाक हार मिली है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस हार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी के लिए खतरे की घंटी बताते हुए लिखा है कि मोदी की पार्टी को भारत के 'सेमीफाइनल' में बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा।
अखबार ने सवालिया अंदाज में तंज कसते हुए लिखा है, 'क्या भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खतरे में हैं?' अखबार ने पीएम मोदी की कही गई '56 इंच वाली छाती' वाली बात को भी व्यंग्य के लहजे में उठाया है। न्यूयॉर्क टाइम्स के बुधवार को छपे आर्टिकल में लिखा है सफेद दाढ़ी और जोशीले भाषणों के साथ पीएम मोदी ने चार वर्ष पहले देश की बागडोर संभाली थी। उन्होंने राजनीति के पॉपुलिस्ट ब्रांड को आगे बढ़ाया जिसमें हिंदू राष्ट्रवाद को लचीली अर्थव्यवस्था के साथ मिलाया गया था। लेकिन मंगलवार को आए चुनावी नतीजे भाजपा और मोदी के लिए वज्रपात से कम नहीं हैं।
मोदी ब्रांड ने खोई चमक
अखबार के मुताबिक अभी ज्यादा वक्त नहीं बीता है जब पीएम मोदी अजेय से लगते थे लेकिन अब वह खतरे में हैं क्योंकि अब मोदी नामक यह ब्रांड अपनी चमक खो रहा है। इसी समय विपक्षी पार्टी कांग्रेस जिसे एक पल को अचेतन मान लिया था, उसमें अचानक से नई जिंदगी मिल गई है। भारतीय मतदाता जिन्होंने एक समय पर एक पार्टी या फिर एक राजनेता को पूरे प्यार से गले लगाया था अब उसी उत्साह से उसके खिलाफ वोट कर रहे हैं।
हार के कारण गिनाए
न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने आर्टिकल में इस बात का जिक्र किया है कि पीएम मोदी ने किसानों को नजरअंदाज किया। वह उन वादों को भी पूरा करने में नाकामयाब रहे जो उनकी पार्टी ने किए थे जिसमें हर माह 10 लाख नौकरियां पैदा करना था और इस वादे को अर्थशास्त्रियों ने भी असंभव बताया था। इसके अलावा अखबार के मुताबिक देश में रहन-सहन का स्तर महंगा होता जा रहा है। हिंदु चरमपंथियों पर नरम रवैया अपना रही है खासतौर पर जिस तरह से भीड़ लोगों को गोकशी के नाम पर मार रही है और पार्टी को इसकी वजह से आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है।
लोकसभा चुनाव पर लगाए सवालिया निशान
अखबार ने विशेषज्ञों के हवाले से लिखा है कि अगर अगला चुनाव पूरी तरह से लोकप्रियता के आधार पर लड़ा जाए और लड़ाई पीएम मोदी और राहुल गांधी के बीच होगी, मोदी को हार का सामना करना पड़ेगा। लेकिन भारत में चुनाव उस तरह से नहीं होते हैं। देश का संसदीय तंत्र और स्थानीय मुद्दे चुनावों को खासा प्रभावित करते हैं। राजनीतिक गठबंधन काफी अहम होता है और यही पीएम मोदी के लिए बड़ी समस्या हो सकता है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि पीएम मोदी को अगले वर्ष कई सीटों से हाथ धोना पड़ सकता है। सवाल यही है कि क्या वह सरकार बनाने के लायक बहुमत हासिल कर पाएंगे। मोदी भी नतीजों से परेशान अखबार की मानें तो भारत की आर्थिक दर सात प्रतिशत से ज्यादा है लेकिन मोदी भारत को अगला चीन नहीं बना सके। लाल फीताशाही आज भी भारत में मौजूद है और साथ ही देश के कई हिस्सों में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर जैसे टेक्सटाइल को घाटे का सामना करना पड़ा है। किसान संकट में हैं, उन्हें बिजली और खाद की कीमतों में इजाफे का सामना करना पड़ रहा है लेकिन अपने उत्पाद के लिए किसानों को बहुत कम कीमत मिल रही है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने बीजेपी की नेशनल एग्जिक्यूटिव कमेटी के सदस्य शेषाद्रीचारी के हवाले से लिखा है, 'नतीजों से पीएम मोदी व्यक्तिगत रूप से खासे परेशान होंगे।'