परिवार के भरण पोषण करने में कम पडने लगी रोजी
rafi ahmad ansari
बालाघाट। म.प्र के बालाघाट जिले में बडी संख्या में बैगा जनजाति के लोग निवास करते है। इन जनजातियों को मुख्य धारा से जोडने और गांव के विकास को लेकर शासन प्रशासन के द्वारा अनेक योजनायें तो बनाई है, किंतु उन योजनाओं का सतही तौर पर अमलीजामा न होने से बदहाली की जिंदगी जीने को मजबूर है। इन्ही योंजनाओं के क्रियान्वयन और बैगाओ के जीवन मानक स्तर पर कितना सुधार आया है, जानने के लिये हमारे अखबार की टीम लगातार जिले के बैगा बाहुल्य गांवो का दौरा कर रही है। इसी तारतम्य में बिते दिनो हमारी टीम दक्षिण बैहर के नक्सल प्रभावित लातरी ग्राम पंचायत के कुर्रेझोडी और कटंगटोला गांव पहुंची। जहां आदिवासी बैगाओं की आर्थिक हालत में अब तक कोई सुधार दिखाई नही दिया। सरकारी योजनाओं के नाम पर कुछ परिवारो के प्रधानमंत्री आवास योंजना के तहत मकान जरूर बने है, लेकिन इन मकानो की हालत देखकर पता चलता है कि आवास योंजना की राशि में जमकर गोलमाल हुआ है। जिसकी वजह से कई बैगा परिवारों को आज भी झोपडीनुमा मकानो में निवास करना पड रहा है। इनके समक्ष रोजगार का संकट भी बना हुआ है। जिसकी वजह से वे लोग दुविधा में जीवन जी रहे है।

कुर्रेझोडी कटंगटोला में किसी भी बैगा परिवार के पास आजीविका के लिये रोजगार के साधन नही है। सरकारी योंजनाओं का यंहा पर बिते 4 माह में कोई काम नही हुआ है। जिससे यहां निवासरत् बैगाओं के सामने रोजी रोटी का भयंकर संकट देखने मिला है। ये परिवार लॉकडाउन के बाद अपनी जिदंगी को पटरी पर लाने के लिये कडी मशक्कत कर रहे है। वनो से मिलने वाले बांस के टोकने और सूपा बनाकर उसे गांव में बेचकर किसी तरह से जीवन यापन कर रहे है।

हालाकि आधुनिक परिवेश के चलते प्लास्टिक के सूपा और टोकने ने उनका यह पारम्पिरिक व्यवसाय भी छीन लिया है। फिर भी किसी तरह से वे लोग सप्ताह में 200 से 400 रूपये तक की आय अर्जित कर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे है। कोरोना महामारी के दौरान हुए लॉकडाउन से बैगाओं के बच्चो की शिक्षा का हाल बेहाल है। गांवो में प्राथमिक शाला और आंगनवाडी केंद्रो में ताले लटके होने से बच्चो का ज्यादातर समय अपने परिजनो के साथ वनो से निकलने वाली जलाऊ लकडियों ओर अन्य बनोपज के भरोषे ही कट रहा है। वही छोटे बच्चे अपने परिजनो के साथ ही समय व्यतीत कर रहे है।
बैगाओ के अनुसार उन लोगो को अब तक वनाधिकार अधिनियम के तहत जमीन के पट्टे भी नही मिले है। आधे से अधिक परिवार भूमि हीन है। जिसके चलते इन परिवारो के सामने सबसे अधिक आर्थिक संकट दिखाई पड रहा है। कटंगटोला और कुर्रेझोडी, सोनगुड्डा लातरी मार्ग पर दो किमी की दूरी पर स्थित है। यहां पहुचने के लिये प्रधानमंत्री ग्रामीण सडक योजना के तहत सडका का निर्माण होना है। लेकिन बिते ढाई सालो से ठेकेदार के द्वारा इन मार्ग का निर्माण कार्य नही कर पायें है जिससे बारिश के दिनो में बैगा आदिवासीयों के सामने आवागमन की तकलीफे बढ जाती है। कुर्रेझोडी और कटंगटोला तक पहुचने के लिये ठेकेदार के द्वारा ग्रेवल सडक का निर्माण कार्य किया है। बारिश के पहले कटंगटोला के समीप करीब पांच सौ मीटर लंबी कांक्रिट सडक का निर्माण कार्य हुआ है। उसमें भी साईड सोल्डर का भराव नही हुआ है जिससे छोटे छोेटे बच्चो और विशेषकर बुजुर्ग परिवारो को अपने अपने घरो में पहुचने के लिये काफी दिक्कतो का सामना करना पडता है। कई बार तो लोग गिर भी चुके है।