आतंकवाद से ज्यादा देश में गड्ढों से जाती है जान!

नई दिल्ली
देशभर में सड़क पर गड्ढे खूंखार होते जा रहे हैं। बीते साल (2017 में) इन गड्ढों ने 3597 जिंदगियों को लील लिया। यानी देश भर में गड्ढों के चलते औसतन प्रतिदिन 10 जानें जा रही हैं। साल 2016 से इसकी तुलना करें, तो एक साल में यह आंकड़ा 50 फीसदी तक बढ़ गया है।

   
साल 2017 में महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 726 लोगों को सड़क पर गड्ढे होने की वजह से अपनी जान गंवानी पड़ी। 2016 की तुलना में महाराष्ट्र में गड्ढों के चलते होने वाली मौतों का यह आंकड़ा दोगुना है। सड़क पर गड्ढों के चलते होने वाली दुर्घटनाओं और उनसे होने वाली मौतें इस बात का निराशाजनक संकेत हैं कि सड़क दुर्घटनाओं से देश को जानमाल की भारी क्षति हो रही है और इसके बावजूद हम सड़क सुरक्षा के प्रति गंभीर नहीं हैं।

सड़क दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतों की गंभीरता को इस तुलना से समझा जा सकता है कि साल 2017 में देश में नक्सलवादी और आतंकवादी घटनाओं में 803 जानें गई, इनमें आतंकवादी, सुरक्षाकर्मी और आम नागरिक तीनों शामिल हैं।

सड़क पर गड्ढों के चलते होने वाली मौतों ने एक बार फिर इस बहस को छेड़ दिया है कि म्युनिसिपल बॉडीज और सड़क स्वामित्व वाली एजेंसियों में भ्रष्टाचार भी इन गड्ढों के होने की एक बड़ी वजह है। इसके अलावा सड़क पर यातायात नियमों का पालन न करने का लोगों का रवैया और ज्यादातर दोपहिया चालकों का हेल्मेट उपयोग न करना भी इन मौतों का प्रमुख कारण है।

सड़क दुर्घटनाओं के चलते हुई मौतों के इस डेटा को सभी राज्यों ने केंद्र सरकार के साथ साझा किया है। इन आंकड़ों से उजागर हुआ है कि गड्ढों के चलते सबसे ज्यादा मौतें उत्तर प्रदेश (987) में हुईं। इस मामले में यूपी के बाद सबसे ज्यादा खराब रेकॉर्ड हरियाणा और गुजरात का है। दिल्ली में साल 2017 में गड्ढो के चलते 8 लोगों की जान गई, जबकि साल 2016 में गड्ढों के चलते यहां एक भी मामला ऐसा नहीं था।

सड़क दुर्घटनाओं की इस स्थिति पर रोड सेफ्टी एक्सपर्ट रोहित बलुजा कहते हैं कि इन दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर आईपीसी के तहत लोगों की हत्या के आपराधिक मुकदमे दर्ज होने चाहिए। कई रिपोर्ट्स में ऐसा सामने आया है कि सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों की सबसे बड़ी वजह रोड का गलत डिजाइन, खराब रख-रखाव और सड़क समस्याओं को सुलझाने की अनदेखी करना भी है।

केंद्रीय सड़क मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया मोटर वीकल्स संशोधन बिल में इस तरह के प्रावधानों को शामिल किया जा रहा है। मोटर वीकल्स संशोधन बिल संसद की कार्रवाई सुचारू ढंग से न चल पाने के कारण लंबे समय से संसद में अटका हुआ है।