जेल में सर्टिफिकेट और डिप्लोमा कोर्स कर कर रहे कैदी

जेल में सर्टिफिकेट और डिप्लोमा कोर्स कर कर रहे कैदी

दसवीं, बाराहवीं से लेकर तकनीकी कोर्स के सर्टिफिकेट और डिप्लोमा कोर्स कर कैदी

भोपाल, अपराध और जुर्म से जुड़ी जेल की दुनिया आम लोगों की जिंदगी से एकदम अलग होती है। लेकिन भोपाल का केंद्रीय कारावास कैदियों को अपराध की दुनिया से दूर नई राह पर चलाने की कोशिश कर रहा है। भोपाल के केंद्रीय कारावास में कैद एक हज़ार से ज्यादा कैदी है जो जुर्म की दुनिया को पीछे छोड़ एक बेहतर इंसान बनने के लिए शिक्षा का सहारा ले रहें हैं। इस जेल में अध्यनरत कैदियों की संख्या सैकड़ों में है।

दसवीं कक्षा में आठ पुरुष और एक महिला कैदी ने दाखिला लिया 
भोपाल केंद्रीय कारागार के अधीक्षक राकेश भांगरे के अनुसार जेल में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग (एनआईओएस) की मदद से दसवीं कक्षा में आठ पुरुष और एक महिला कैदी ने दाखिला लिया है। इसी प्रकार 12 वीं कक्षा में 7 पुरुष और 9 महिला कैदियों ने दाखिला लिया हुआ है। प्राथमिक परीक्षा के लिए 47 पुरुष और 11 महिला बंदियों ने प्रवेश ले रखा है। वहीं प्रारंभिक परीक्षा में 32 पुरुष और 3 महिला बंदियों ने दाखिला ले रखा है। इसी प्रकार प्रवेश परीक्षा की 22 पुरुष आर चार महिला कैदी तैयारी कर रहे हैं।

175 पुरुष और 50 महिला कैदी तालीम हासिल कर रहे 
जेल में सर्व साक्षरता अभियान के तहत 175 पुरुष और 50 महिला कैदी तालीम हासिल कर रहे हैं। डिप्टी जेलर सूरज शर्मा ने बताया कि जेल में कुल 35 पुरुष कैदी कंप्यूटर प्रशिक्षण हासिल कर रहे हैं। जिससे जेल से छूटने के बाद यह कैदी तकनीक के सहारे उन्हें कंप्यूटराइज्ड जॉब आसानी से मिलने की संभावनाएं अधिक होंगी।

कुल 243 बंदी सर्टिफिकेट कोर्स कर रहे 
इंदिरा गाँधी नेशनल ओपन यूनीवर्सिटी से भोजन एवं पोषण से सर्टिफिकेट कोर्स करने वालों की भी जेल के भीतर अच्छी खासी तादाद है। जेल में कुल 243 बंदी सर्टिफिकेट कोर्स कर रहे हैं। जिसमें 237 पुरुष और 26 महिला कैदी शामिल हैं।

कोई कैदी अंगूठा लगाता है तो जब वो जेल से बाहर जाए तो हस्ताक्षर करना सीख कर जाए
भोपाल केंद्रीय कारागर के अधीक्षक राकेश भांगरे का कहना है,यहां पठन-पाठन के अलावा संकल्प भी लिया गया है कि अगर कोई कैदी अंगूठा लगाता है तो जब वो जेल से बाहर जाए तो हस्ताक्षर करना सीख कर जाए। चाहें वो थोड़े समय के लिए जेल क्यों न आया हों। उनका दावा है की इस संकल्प की वजह से कैदियों में एक नयी सोच पैदा करने की दिशा में जेल प्रशासन को काफी सफलता मिली है। शायद यही वजह है की कई कैदियों ने महज आठवीं पास की थी फि र रोज़मर्रा की जिंदगी में उलझ कर रह जाने की वजह से आगे की पढ़ाई नहीं कर पाए। किसी जुर्म में गिरफ्तार होने के बाद उन्हें जेल हो गयी और बाद में सजा मिली। लेकिन जेल में कई साल रहने के ऐसे कैदियों को दसवीं-बाराहवीं कक्षा पास करने का मौका मिल गया।

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