मप्र में में टैक्स चोरी का हथकंडा...फर्जी बिल, फेक कंपनियां और सरकार को करोड़ का चूना

मप्र में में टैक्स चोरी का हथकंडा...फर्जी बिल, फेक कंपनियां और सरकार को करोड़ का चूना

भोपाल। देश में सेवा एंव वस्तु कर को लागू हुए करीब 6 साल हो चुके हैं। सरकार लगातार सिस्टम को दुरुस्त करने में लगी है, ताकि टैक्स चोरी को रोका जा सके। लेकिन मप्र में सरकारी अधिकारियों, ठेकेदारों और फेक कंपनियों के गठबंधन से सरकार का हर साल अरबों रूपए की चपत लगाई जा रही है। शातिर लोग तरह-तरह से टैक्स चोरी के हथकंडे अपना रहे हैं। ऐसा ही टैक्स चोरी का हथकंड़ा मप्र में सडक़ों के निर्माण में अपनाया जा रहा है।

गौरतलब है कि मप्र में सरकार पिछले कई सालों से सडक़ों का जाल बिछा रही है। 20 साल में  4.10 लाख किमी सडक़ों का निर्माण हुआ है। इन सडक़ों के निर्माण में डामर यानी बिटुमेन का उपयोग किया गया है। नियमानुसार प्रदेश में सडक़ निर्माण में लगने वाला डामर केवल सरकारी रिफायनरियों से लेने का नियम है। साथ ही ठेकेदारों को डामर का बिल लोक निर्माण विभाग में जमा कराना पड़ता है। लेकिन मप्र में अधिकारियों, ठेकेदारों और कंपनियों की साठगांठ से आयातित डामर का उपयोग किया जा रहा है और  सरकारी रिफायनरियों का फर्जी बिल जमा कर सरकार को करोड़ो रूपए की चपत लगाई जा रही है।

इसलिए आयातित डामर का उपयोग
सूत्रों का कहना है कि देश की सरकारी रिफायनरियों से मिलने वाला बिटुमेन ठेकेदारों को महंगा पड़ता है। उस पर उन्हें जीएसटी का भी भुगतान करना पड़ता है। ऐसे में नियमों को दरकिनार कर ठेकेदार ईरान से इम्पोर्ट होने वाला सस्ता बिटुमेन लगाते है और सरकारी रिफायनरियों का फर्जी बिल जमा कराकर भुगतान ले रहें है। ठेकेदारों की माने तो इंपोर्टेड बिटुमेन की क्वालिटी सरकारी रिफायनरियों जैसी ही है लेकिन 20 प्रतिशत सस्ता होने और उधारी में मिल जाने के कारण इंपोर्टेड डामर लगाया जाता है।

मप्र में बड़ा नेटवर्क सक्रिय
लोक निर्माण विभाग के आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में लगातार सडक़ों को निर्माण और सुधार का कार्य चलता रहता है। इस कारण प्रदेश में बड़ी मात्रा में डामर का उपयोग होता है। इसको देखते हुए इंपोर्टेड डामर के कई सप्लायर प्रदेश में वर्षों से सक्रिय है। जानकारी के अनुसार प्रदेश में एक सीजन में 500 से 1000 करोड़ का इंपोर्टेड डामर बेचा जा रहा है। इस कारण अधिक से अधिक मुनाफा कमाने के लिए कई लोग अवैध तरीके से डामर सप्लाई करने में लग गए हैं।  डामर सप्लायर बकायदा सरकारी रिफायनरी के बिल के साथ डामर देने को राजी हो जाते है। इसमें अधिकांश भुगतान नकद में किया जाता है। हमारे पास ऐसे फर्जी बिलों की कॉपी है, जिन्हें सरकारी विभागों में जमा करने के लिए बनाया गया है।

क्यूआर कोड के साथ तैयार किए जाते हैं फर्जी बिल
प्रदेश में डामर सप्लाई करने वालों का नेटवर्क कितना सशक्त और शातिर है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि रिफायनरियों के नकली बिल बकायदा क्यूआर कोड के साथ तैयार किए जाते है। जिसे स्केन करने पर रिफायनरी का फर्जी वेब पेज खुलता है, जिस पर डामर सप्लाई का फर्जी बिल नंबर और लॉट नंबर दिखाई देता है। जब इस संदर्भ में डामर सप्लाई करने वाले ऐजेंटों से बात की तो पता चला कि सरकारी रिफायनरी से 20 प्रतिशत सस्ता डामर 24 घंटे में सप्लाई की गारंटी ली जाती है। साथ ही क्वालिटी टेस्ट कराने के बाद भुगतान करने पर भी डामर ऐजेंट तैयार हो गए। क्वालिटी की गांरटी के नाम पर कई बड़े ठेकेदारों के नाम भी लिए गए। दरअसल, यह पूरा काम सुनियोजित और साठगांठ से हो रहा है।

महाराष्ट्र और गुजरात में इंपोर्ट होता है डामर
डामर के सभी इंपोर्टर महाराष्ट्र और गुजरात में हैं। ये इंपोर्टर सरकारी रिफायनरियों को भी डामर सप्लाई करते है, जिसके लिए इंडियन आयल, भारत पेट्रोलियम, हिन्दुस्तान पेट्रोलियम जैसी सरकारी रिफायनरियां बकायदा टेंडर जारी करती है और लाखों टन डामर खरीदा जाता है। ऐसे कई टेंडर दस्तावेज इन्टरनेट पर मौजूद हैं। इंपोर्टेड डामर के सप्लायर भी यही तर्क देकर ठेकेदारों को डामर की गुणवत्ता पर भरोसा दिलाते है। गुजरात, राजस्थान और ऐसे कई राज्यों में इंपोर्टेड डामर को कुछ नियम एवं शर्तों के साथ मान्यता मिली हुई है। मप्र में इंपोर्टेड डामर की आपूर्ति गुजरात और महाराष्ट्र के बंदरगाहों से होती है। यहां से बड़े ट्रेडर थोक में सौदा कर डामर प्रदेश में लातें हैं। इसके बाद लोकल डामर ऐजेंटो का काम शुरू होता है जो सरकारी रिफायनरी के फर्जी बिल के साथ ठेकेदारों को डामर सप्लाई कराते हैं।

इसलिये चल रहा खेल 
जानकारी के अनुसार डॉमर कारोबारी मप्र में ही करीब 2000 करोड़ रूपये तक का कारोबार सालाना करते हैं। क्योंकि सरकारी रिफायनरी की डामर के मुकाबले यह जहां 20 प्रतिशता तक सस्ती होती है। वहीं दूसरी ओर सड़क निर्माण से जुड़े कारोबारियों का मुनाफा बढ़ जाता है। इसके साथ ही बड़े ट्रेडर से थोक में सौदा कर लोकल डामर ऐजेंट सड़क ठेकेदारों को सरकारी रिफायनरी के फर्जी बिल के साथ डामर मुहैया कराता है। 

जांच हो तो सामने आए घोटाला 
प्रदेश में लगातार सड़को के निर्माण और सुधार का कार्य चलता रहता है। इस कारण प्रदेश में बड़ी मात्रा में डामर का उपयोग होता है। यदि इनके  ठेकेदारों द्वारा लगाये गए डामर खपत बिलों की जांच कराई जाय तो करोड़ों रूपये का जीएसटी घोटाला सामने आ सकता है। मामले की जानकारी लेने के लिए लोक निर्माण विभाग के प्रमुख सचिव सुखबीर सिंह को पफोन लगाया तो उन्होंने फ़ोन रिसीव नहीं किया।

इनका कहना है
अभी कोई शिकायत विभाग को नहीं मिली है। इस तरह के प्रकरणों को रोकने केंद्र सरकार द्वारा जारी परिपत्र विचाराधीन है। 
आरके मेहरा, सचिव लोक निर्माण विभाग

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