जलवायु परिवर्तन का सामना करने नई कृषि प्रणाली विकसित करने की जरूरत: डॉ. पाटील

रायपुर, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एस.के. पाटील ने कहा है कि मौसम के बदलते मिजाज़ को देखते हुए खेती के नये तौर-तरीके विकसित करने की जरूरत है। इसके लिए मौजूदा कृषि प्रणाली में बदलाव लाना होगा। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए फसल विविधिेकरण को बढ़ावा देना होगा और मिट्टी-पानी का संरक्षण करना होगा। डॉ. पाटील ने परंपरागत फसलों की खेती के स्थान पर बागवानी फसलों और मोटे अनाज की खेती तथा पशुपालन को अपनाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि कृषि प्रणाली में परिवर्तन के बारे मंे रणनीति बनाते समय किसानों के अनुभवों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। डॉ. पाटील आज यहां कृषि महाविद्यालय रायपुर के सभागार में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय एवं सेन्टर फॉर एनवायरमेन्ट र्साइंस एण्ड क्लाइमेट रेजिलेएन्ट एग्रीकल्चर, आई.सी.ए.आर.-आई.ए.आर.आई., नई दिल्ली द्वारा जलवायु परिवर्तन अनुकूलन विषय पर आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ कर रहे थे।
Need to develop new agricultural system to face climate change: Dr. Patilकार्यशाला को संबोधित करते हुए डॉ. पाटील ने कहा कि पिछले कुछ वर्षाें से मौसम का मिजाज़ लगातार बदल रहा है। देश के कुछ हिस्सों में सूखा तो कुछ हिस्सों में बाढ़ के हालात होते हैं। वर्षा का वितरण असमान और अनियमित होता जा रहा है। तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है। उसके बावजूद फसलों के उत्पादन में वृद्धि हो रही है क्योकि कृषि वैज्ञानिकांे और किसानों ने बदलते मौसम के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए नयी तकनीके विकसित कर ली हैं। लेकिन जिस हिसाब से कृषि के प्राकृतिक संसाधनों भूमि और जल में कमी आ रही है, आबादी में वृद्धि हो रही है और तापमान तथा प्रदूषण में बढ़ोतरी हो रही है उसे देखते हुए इस दिशा में और अधिक काम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के अनुकूल नयी कृषि प्रणाली विकसित करते समय मैदानी स्तर पर काम करने वाली स्वयंसेवी संस्थाओं और किसानों के अनुभावों को शामिल करना चाहिए।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के संचालक अनुसंधान सेवाएं डॉ. एस.एस. राव ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि में जोखिम बढ़ता जा रहा है और किसान धीरे-धीरे कृषि से विमुख होते जा रहे हैं। ऐसी परिस्थितियों में नयी कृषि प्रणाली विकसित किये जाने की जरूरत महसूस की जा रही है। उन्होंने कहा कि इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए इस एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया है। उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि कार्यशाला से सार्थक निष्कर्ष प्राप्त होंगे। इस अवसर पर कृषि महाविद्यालय कांकेर के अधिष्ठाता डॉ. एम.एल. शर्मा और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. एस. नरेश कुमार ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यशाला में कृषि महाविद्यालय रायपुर के अधिष्ठाता डॉ. ओ.पी. कश्यप, निदेशक विस्तार सेवाएं डॉ. ए.एल. राठौर, अधिष्ठाता छात्र कल्याण डॉ. जी.के. श्रीवास्तव विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। कार्यशाला के आयोजन सचिव डॉ. प्रशान्त पाण्डेय ने विषय प्रतिपादन किया और कृषि विस्तार विभाग के सह-प्राध्यापक डॉ. अकरम खान ने आभार प्रदर्शन किया। कार्यशाला में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों सहित कृषि एवं उद्यानिकी विभागों के अधिकारी, स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि तथा प्रगतिशील किसान शामिल हुए।