7 साल से केंद्र ने नहीं दिया फंड, छत्तीसगढ़ पर बढ़ गया है RTE का खर्च

 रायपुर
 निजी स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर तबके के बच्चों को शिक्षा देने के लिए केन्द्र सरकार ने 2009 में शिक्षा का अधिकार कानून बनाया था। इसके तहत निजी स्कूल में दाखिला लेने वाले बच्चों की फीस केंद्र और राज्य के फंड से चुकाने का नियम बना।

एक विद्यार्थी पर केंद्र का 75 फीसदी और राज्य 25 फीसदी बजट तय है।लेकिन बीते सात सालों से केंद्र ने फंड नहीं दिया। इस वजह से राज्य सरकार पर आरटीइ का बोझ बढ़ गया है। इस पर राज्य सरकार अब तक 250 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है।वहीं, पूरी राशि बढ़कर 330 करोड़ रुपए तक पहुंच गई है।

हजारों बच्चों का हर साल दाखिला 
शिक्षा का अधिकार कानून बनने के बाद गरीब बच्चों को निजी स्कूल में प्रवेश का रास्ता खोला गया था।नियम के तहत निजी स्कूलों में नर्सरी से कक्षा आठ तक नि:शुल्क शिक्षा दी जा रही है।इस साल 35 हजार बच्चों को प्रवेश देने की प्रक्रिया चल रही है।

एक बच्चे पर इतना होता है खर्च 
सरकार नर्सरी से कक्षा 5 तक एक बच्चे पर कुल 36 हजार रुपए खर्च करती है।वहीं कक्षा 6 से 8 तक एक बच्चे पर 34 हजार 500 रुपए सरकारी फंड से खर्च होता है। इसमें किताब-कॉपियां, यूनिफार्म से लेकर ट्यूशन फीस तक शामिल होती है।

1000 स्कूलों को भुगतान नहीं
प्रदेश में आरटीइ के तहत प्रवेश देने वाले 6133 गैर सरकारी स्कूल हैं। इनमें से 1000 से अधिक स्कूल एेसे हैं, जिन्हें भुगतान नहीं किया गया।स्कूल संचालकों का कहना है कि सालों से आरटीइ का पैसा नहीं मिला है। इसके बावजूद हर साल बच्चों का दाखिला ले रहे हैं। इन स्कूलों को 40 करोड़ से अधिक की राशि सरकार को भुगतान करना है।

लोकशिक्षण संचालनालय के संचालक एस प्रकाश ने बताया कि केन्द्र सरकार को पत्र भेजा गया था, जिसके बाद इस वर्ष 180 करोड़ रुपए का प्रस्ताव किया गया है।जिन स्कूलों को भुगतान नहीं किया गया है, जल्द ही उन्हें राशि दे दी जाएगी।