आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व सहायिका के वेतन की मांग पर दो माह में निर्णय लें: हाईकोर्ट 

आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व सहायिका के वेतन की मांग पर दो माह में निर्णय लें: हाईकोर्ट 

जबलपुर, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व सहायिका वेतन सहित अन्य लाभ प्रदान किए जाने की मांग करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। हाईकोर्ट जस्टिस राज मोहन की एकलपीठ ने याचिका का निराकरण करते हुए राज्य सरकार और निदेशक महिला एवं बाल कल्याण विभाग को निर्देशित किया है कि वे दो महीने में याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन पर विधि अनुसार निर्णय लें।

अभ्यावेदन पर केंद्र व राज्य सरकार द्वारा कोई निर्णय नहीं लिया

दरअसल, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एवं सहायिका कल्याण संघ सिवनी की ओर से हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। याचिका के मुताबिक, उन्होंने आंगनाबड़ी सहायिकाओं का वेतन दस हजार रुपये तथा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का वेतन बीस हजार रुपये किए जाने की मांग करते हुए केंद्र व राज्य सरकार को अभ्यावेदन दिया था। अभ्यावेदन में वेतन वृध्दि, बीमा, पेंशन, ग्रेज्युटी और अन्य लाभ प्रदान किए जाने की राहत भी चाही गई थी। याचिका में कहा गया था कि उन्हें अभ्यावेदन पर केंद्र व राज्य सरकार द्वारा कोई निर्णय नहीं लिया गया।

आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं व सहायिकाओं से 12 घंटे काम लिया जाता है

याचिका की सुनवाई के दौरान एकलपीठ को बताया गया कि केंद्र सरकार द्वारा कुपोषण के खिलाफ बनाई गई योजना के तहत साल 1975 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय गठित किया गया था। इस योजना के तहत ग्रामीण अंचल, शहर तथा महानगरों में आंगनबाड़ी केंद्र स्थापित किए गए थे। आंगनबाड़ी केंद्र में एक कार्यकर्ता और एक सहायिका की नियुक्ति की गई थी, जिनके मानदेय की 60 प्रतिशत राशि केंद्र सरकार तथा 40 प्रतिशत राज्य सरकार प्रदान करती है।
दलील दी गई कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं व सहायिकाओं से 12 घंटे काम लिया जाता है। कुपोषण के अतिरिक्त उनसे सरकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार, चुनाव ड्यूटी व अन्य शासकीय कार्य लिए जाते हैं। इसके अलावा महिला के गर्भ में बच्चा के आने से लेकर उनकी डिलीवरी करवाने, पांच साल तक बच्चों का पालन पोषण करने, 12 साल तक बालिकाओं को जागरूक करने का कार्य वह पहले से करती आ रही हैं। भारतीय संविधान के अनुच्देछ 123 और मजदूरी अधिनियम के विपरीत कम वेतन दिया जा रहा है। एकलपीठ ने उक्त निर्देश के साथ याचिका का निराकरण किया। याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता बालकिशन चौधरी और प्रशांत मिश्रा ने पैरवी की।

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